देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश
श्रोताओ, रविवार 23 नवम्बर को काथलिक कलीसिया ने ख्रीस्त राजा का महापर्व मनाया। इस दिन,
रोम स्थित सन्त पेत्रुस महामन्दिर में ख्रीस्तयाग के उपरान्त, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16
वें ने महामन्दिर के प्राँगण में एकत्र हज़ारों तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना
का पाठ कर उन्हें अपना सन्देश दिया। इस प्रार्थना से पूर्व भक्त समुदाय को सम्बोधित करते
हुए उन्होंने कहाः
“अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, आज, धर्मविधिक वर्ष के अन्तिम
रविवार को हम, हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त, ब्रह्माण्ड के राजा का महापर्व मना रहे हैं।
इस बात से हम परिचित हैं कि येसु ने, देशों के राष्ट्राध्यक्षों के मापदण्ड के अनुसार
राजा कहलाये जानेवाले, राजनैतिक या सांसारिक भाव में राजा के शीर्षक का सदैव बहिष्कार
किया, सन्त मत्ती रचित सुसमाचार में येसु कहते हैं – "संसार के अधिपति अपनी प्रजा पर
निरंकुश शासन करते हैं और सत्ताधारी लोगों पर अधिकार जताते हैं।" इसके विपरीत अपने दुखभोग
काल में पिलातुस के सामने येसु अपने अद्वितीय राजत्व की घोषणा करते हैं, पिलातुस के यह
पूछने पर कि क्या तुम राजा हो? येसु उत्तर देते हैं – "आप कहते हैं कि मैं राजा हूँ";
इसके कुछ क्षण पहले ही येसु ने घोषित किया थाः "मेरा राज्य इस संसार का नहीं है।"
सन्त
पापा ने कहाः "सच तो यह है कि येसु का राजत्व पिता ईश्वर के राजत्व की प्रकाशना एवं उसका
कार्यान्वयन है, जो प्रेम एवं न्याय के साथ सभी कुछ पर शासन करते हैं। पिता ने पुत्र
को, परम बलिदान तक मनुष्यों से प्यार करते हुए उन्हें अनन्त जीवन प्रदान करने का, मिशन
सौंपा। साथ ही, जिस क्षण से येसु सब कुछ में हमारी तरह मानव पुत्र बने उसी क्षण से पिता
ईश्वर ने उन्हें मनुष्यों पर न्याय करने का भी अधिकार दिया।
आज का सुसमाचार,
सन्त मत्ती द्वारा येसु के दुखभोग से कुछ ही पहले प्रस्तुत अन्तिम न्याय के प्रभावशाली
दृष्टान्त के माध्यम से, हुबहु, न्यायकर्त्ता ख्रीस्त के इसी विश्वव्यापी राजत्व पर बल
देता है। इसके चित्र साधारण हैं, भाषा लोकगत है किन्तु सन्देश अत्यन्त महत्वपूर्ण है:
यह हमारी अन्तिम नियति का सत्य है तथा उस मापदणड के बारे में है जिससे हम सब का न्याय
किया जायेगा। सन्त मत्ती रचित सुसमाचार के अनुसार येसु कहते हैं: "मैं भूखा था और तुमने
मुझे खिलाया, मैं प्यासा था और तुमने प्यास बुझाई, मैं अजनबी था और तुमने अपने घर में
मेरा स्वागत किया आदि आदि.... "
सन्त पापा ने आगे कहाः "सुसमाचार के
इस पाठ को कौन नहीं जानता? यह हमारी सभ्यता का अंग बन चुका है। इसने ख्रीस्तीय संस्कृति
के लोगों के इतिहास पर, उनके मूल्यों, उनकी संस्थाओं और उनके अनेकानेक कल्याणकारी एवं
सामाजिक संगठनों पर अपनी छाप छोड़ी है। वस्तुतः, ईश्वर का राज्य इस संसार का नहीं है
किन्तु वह, ईश्वर की दया से, मनुष्य एवं इतिहास में निहित सभी अच्छाईयों को पूर्णता तक
पहुँचाता है। यदि हम, सुसमाचार की शिक्षा के अनुकूल, पड़ोसी से प्रेम करेंगे तब हम ईश्वर
के प्रभुत्व के लिये जगह बना पायेंगे तथा उनका राज्य खुद ब खुद हमारे बीच आ जायेगा। इसके
विपरीत यदि हममें से प्रत्येक केवल अपने स्वार्थ की ही सोचेगा तो विनाश के सिवाय विश्व
का और कुछ भी नहीं हो पायेगा।"
उन्होंने कहाः............"प्रिय मित्रो,
ईश्वर का राज्य प्रतिष्ठाओं एवं दिखावटों का प्रश्न नहीं है किन्तु, जैसा कि सन्त पौल
लिखते हैं: "वह पवित्रआत्मा द्वारा प्रदत्त न्याय, शांति एवं आनन्द विषय है।" प्रभु दिल
से हमारा कल्याण चाहते हैं, अर्थात्, वे चाहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य जीवन प्राप्त करे,
और, विशेष रूप से, उनकी सन्तानों में सबसे निम्न कहे जानेवाले भी उनके उस प्रीतिभोज में
शामिल होवें, जिसे उन्होंने हम सब के लिये तैयार किया है। यही कारण है कि पाखण्डी लोग
उनकी दृष्टि में बेकार हैं क्योंकि, सन्त मत्ती रचित सुसमाचार के अनुसार, "वे प्रभु प्रभु
की रट तो लगाते हैं किन्तु उन्होंने उनके आदेशों की अवहेलना कर दी है।"
अन्त में सन्त पापा ने कहाः .........."ईश्वर उन सबको अपने अनन्त राज्य में स्वीकार
करते हैं जिन्होंने प्रति दिन उनके आदेशों के वरण का प्रयास किया। इसीलिये कुँवारी मरियम,
ईश्वर द्वारा सृजित सब प्राणियों में विनम्र, उनकी दृष्टि में सबसे महान हैं तथा महारानी
के सदृश, ख्रीस्त राजा के दाहिनी ओर विराजमान हैं। पुत्रसुलभ विश्वास के साथ हम एक बार
फिर अपने मनोरथों को मरियम स्वर्गिक मध्यस्थता के सिपुर्द करना चाहते हैं ताकि विश्व
में अपने ख्रीस्तीय मिशन को कार्यान्वित कर सकें।"
इस प्रकार, सबसे प्रार्थना
का अनुरोध करने के बाद, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ
देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सब पर प्रभु की शांति का आव्हान कर सबको अपना प्रेरितिक
आर्शीवाद प्रदान किया ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------