अंतर धार्मिक वार्ता संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष कार्डिनल ज्यं लुई तोरान ने
न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य आमसभा के 63 वें सत्र को बुधवार को सम्बोधित
करते हुए बल दिया कि अपने सदस्यों की कमजोरियों और विरोधाभासों के बावजूद धर्मों में
शांति और मेल मिलाप का संदेश होता है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी प्रकृति
और मिशन से ही शांति का विद्यालय बने। हमें सदैव सब पक्षों के वैध हितों को मन में रखते
हुए सोचना और कार्य करना चाहिए। बल की ताकत के तर्क से कहीं बढ़कर इसके बदले में कानून
और लोगों के विवेक से प्राप्त शक्ति को लागू कर शांति निर्माता बनें। इस दुरूह कार्य
में विश्वासी और विश्वासी समुदायों का अपना स्थान है और उन्हें अपनी भूमिका अदा करनी
है। सार्वजनिक वाद विवादों में शामिल होकर विश्वासी स्वयं को सार्वजनिक हित के प्रसार
में सहयोग करने के लिए बुलाये गये महसूस करते हैं। सार्वजनिक हित मूल्यों के ऐसे मंच
पर हैं जिसे सबलोग मानते हैं। ये हैं- जीवन की पवित्रता और मानव जीवन की प्रतिष्ठा, धर्म
और अंतःकरण की स्वतंत्रता, जिम्मेदार तरीके से स्वतंत्रता का अभ्यास, विभिन्न विचारों
की स्वीकृति तर्क का सही प्रयोग, लोकतांत्रिक जीवन की सराहना तथा प्राकृतिक संसाधनों
की देखरेख आदि। कार्डिनल तुरान ने श्रोताओं को अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का परित्याग
किये बिना ही और अधिक सुरक्षित और एकता में बंधे विश्व की रचना करने के लिए उपाय पाने
का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हम केवल सहनशीलता और अस्पष्ट समर्पण से संतुष्ट न रहें
लेकिन भ्रातृत्व भावना को आदर्श से कहीं बढ़कर इसे वास्तविक बनायें।