देवदूत संदेश प्रार्थना से पूर्व संत पापा द्वारा दिया गया संदेश
संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें नें रविवार 26 अक्तूबर को संत पेत्रुस महामंदिर के प्रांगण
में एकत्रित हजारों तीर्थयात्रियों को देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व सम्बोधित
करते हुए कहाः
अतिप्रिय भाईयो और बहनो,
संत पेत्रुस महामंदिर में
सम्पन्न समारोही ख्रीस्तयाग के साथ ही 12 वीं विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा का समापन हो
गया जो कलीसिया के जीवन और मिशन में ईशवचन शीर्षक से आयोजित की गयी थी। ईशवचन को धार्मिक
भाव में सुनकर हम दैनिक जीवन में जीते रहे हैं। उनके शिष्य और सेवक बनने की कृपा और सौंदर्य
से प्राप्त आनन्द तथा कलीसिया शब्द के सार्थक मौलिक अर्थ के अनुसार ईशवचन द्वारा बुलाये
जाने के आनन्द को विशेष कर पूजन धर्मविधि में अनुभव करते रहे हैं।
प्रत्येक
धर्माध्यक्षीय धर्मसभा कलीसियाई सामुदायिकता का दृढ़ अनुभव है तथापि यह धर्मसभा और अधिक
प्रभावी रही क्योंकि चिंतन के केन्द्र में जो था वह कलीसिया को आलोकित कर मार्गदर्शन
प्रदान करता है और वह है- ईशवचन जो स्वयं ख्रीस्त हैं। एक पहलू जिसपर मनन चिंतन किया
गया वह था शब्द और शब्दों के बीच संबंध अर्थात् दिव्य शब्द और धर्मशास्त्र जो इसे व्यक्त
करता है। द्वितीय वाटिकन महासभा ने इस बात की पुष्टि की थी कि एक अच्छी बाइबिल व्याख्या
के लिए ऐतिहासिक आलोचना और ईशशास्त्रीय पद्धति दोनों चाहिए क्योंकि पवित्र धर्मशास्त्र
में ईशवचन मानवीय शब्दों में लिखा गया है। इसलिए पूरे धर्मशास्त्र, कलीसिया की जीवित
परम्परा और विश्वास के प्रकाश की एकता को ध्यान में रखकर प्रत्येक पाठ को पढ़ा जाये।
वैज्ञानिक व्याख्या और दिव्य वचन दोनों आवश्यक हैं, खोज करने के लिए एक दूसरे के पूरक
हैं, शाब्दिक अर्थों के द्वारा यह खोज करने के लिए जो आध्यात्मिक है कि ईश्वर हमें आज
क्या बताना चाहते हैं।
विश्व धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के अंत में पूर्वी रीति की
कलीसियाओं के प्राधिधर्माध्यक्षों द्वारा की गयी अपील को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय,
धार्मिक नेताओं, सद्इच्छावाले प्रत्येक स्त्री पुरूष से अपील करता हूँ कि पूर्व के देशों
में हो रही दुखद त्रासदी की ओर देखें जहाँ ख्रीस्तीय असहिष्णुता एवं बर्बर हिंसा के शिकार
हो रहे हैं,उनकी हत्या की जा रही है, धमकी दिया जा रहा है, वे अपने घर का परित्याग करने
के लिए विवश हो रहे हैं और शरण पाने के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। मैं विशेष रूप से
इराक और भारत के बारे में सोच रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि इन देशों की प्राचीन और महान
जनता ने सदियों के सम्मानपूर्ण सहअस्तित्व के द्वारा मातृभूमि के विकास में लघु किन्तु
मेहनती और कुशल ख्रीस्तीय समुदायों के योगदान की सराहना करना सीखा है। ख्रीस्तीय समुदाय
किसी विशेषाधिकार की माँग नहीं करते हैं लेकिन वे अपने देश में देशवासी भाई-बहनों के
साथ जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। वे ऐसा सदैव करते आये हैं। मैं प्रशासनिक और धार्मिक
अधिकारियों का आह्वान करता हूँ कि वे यथासंभव प्रयास करें ताकि विधि व्यवस्था और नागरिक
सहअस्तित्व की पुर्नस्थापना हो सके। सरकारी संस्थानों द्वारा उचित स्तर पर उपलब्ध कराई
गयी सुरक्षा पर ईमानदार और निष्ठावान नागरिक भरोसा कर सकें।
मेरी आशा है कि जो
लोग नागरिक और धार्मिक मामलों के प्रभारी हैं वे नेता तथा आबादी के संदर्भ बिन्दु रूप
में अपनी भूमिका के प्रति सजग रहकर ख्रीस्तीय और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति मित्रता
और चिंता के सार्थक, ठोस उपाय करेंगे। उनके वैध अधिकारों की रक्षा करने को प्रतिष्ठा
का बिन्दु बनायेंगे।
धर्मसभा के अंत में ख्रीस्तयाग के दौरान मैंने अपनी
अफ्रीका यात्रा की चर्चा की थी इसे पुनः सहर्ष व्यक्त करता हूँ। अगले वर्ष अक्तूबर माह
में रोम में सिनड आफ अफ्रीका अर्थात् अफ्रीका के धर्माध्यक्षों की द्वितीय विशेष आमसभा
आयोजित की जाएगी। इसके पूर्व ईश्वर ने चाहा तो मैं मार्च महीने में अफ्रीका महादेश की
यात्रा करूँगा। सर्वप्रथम मैं कैमरून जाऊँगा जहाँ अफ्रीका महादेश के धर्माध्यक्षों को
सिनड की कार्यवाही की तैयारी का दस्तावेज उन्हें सौंप दूँगा। इसके बाद मैं अंगोला की
यात्रा करूँगा जहाँ देश में सुसमाचार के आगमन की 500 वीं वर्षगांठ समारोह मनाया जायेगा।
मैं ऊपर वर्णित पीड़ाओं और आशाओं को जो हमारे दिल में हैे विशेष कर अफ्रीकी सिनड को पवित्रतम
कुँवारी माता मरियम की मध्यस्थता के सिपुर्द करता हूँ।
इतना कहकर संत पापा बेनेडिक्ट
16 वें ने देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और तीर्थयात्रियों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद
प्रदान किया।