2008-10-22 13:16:50

बुधवारीय-आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का संदेश


बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने पौल षष्टम् सभागार में एकत्रित हजारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहा

प्रिय भाइयो एवं बहनों संत पौल के संबंध में हमारी धर्मशिक्षामाला को जारी रखते हुए आज हम विचार करें कैसे संत पौल की पूरी शिक्षा येसु ख्रीस्त के जीवन पर केन्द्रित रही।

संत पौल ने लोगों को सदा बताया कि येसु ख्रीस्त क्रूस पर मारे गये, महिमा के साथ जी उठे और हमारे बीच निवास करते हैं।

इतना ही नहीं संत पौल येसु के जीवन मृत्यु और पुनरुत्थान के बारे में लोगों को शिक्षा देते रहे पर उन्होंने यह भी बताया कि येसु आदि काल से पिता ईश्वर के साथ थे।

येसु ख्रीस्त ईश्वर की प्रज्ञा हैं जो ईश्वर के साथ अनादिकाल से विद्यमान थे और बाद में मनुष्यों के साथ रहने के लिये दुनिया में आये। वे दुनिया में इसलिये आये ताकि लोगों को ईश्वर की योजना के अनुसार मुक्ति दिला सकें।

फिलिप्पियों के नाम लिखे संत पौल के पत्र में हम एक गीत पाते हैं जिसमें कहा गया है कि येसु ईश्वर के साथ अनादिकाल से थे।

संत पौल लोगों से यह भी अपील करते हैं कि हम यह विश्वास करें कि येसु सृष्टि के पहले से विद्यमान हैं, वे हमारी मुक्ति के लिये इस दुनिया में आये और अपनी मृत्यु के द्वारा मनुष्य और ईश्वर के बीच एक मध्यस्थ बन गये।
फिर संत पौल हमें आमंत्रित करते हुए कह रहे हैं कि हम येसु ने हमें मुक्ति का जो दान दिया उसे स्वीकार करें।

हम इसे इसलिये स्वीकार करें क्योंकि येसु स्वयं ही ईश्वर हैं पुनर्जीवित मसीहा हैं औऱ खुद ही सब ज्ञानों के श्रोत हैं।


इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने इंगलैंड, आयरलैंड, डेनमार्क, स्वीडेन, घाना, नोर्वे, उत्तरी कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, गौम औऱ अमेरिका से से आये तीर्थयात्रियों पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।













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