मेघालय राज्य योजना आयोग के अध्यक्ष ने पी.ए. संगमा ने कहा है कि भारत की तीन प्रतिशत
से भी कम ईसाई भारत की नैतिक और आध्यात्मिक ताकत हैं पर उन्हें आज उनके विश्वास के लिये
अऩेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पी. ए. संगमा ने उक्त बातें उस समय कहीं
जब वे शिलौंग के सिनोद कॉलेज के द्वारा ' ईसाई और राष्ट्रीय एकीकरण ' विषय पर आयोजित
दो दिवसीय सेमिनार में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यह आरोप लगाना गलत है कि ईसाई धर्म
और पश्चिमी जीवनशैली एक है क्योंकि ईसाई धर्म संत थोमस प्रेरित के द्वारा सन् 52 ईस्वी
में ही भारत आया। ईसाइयों में पश्चिम की झलक मिलती है क्योंकि ईसाई धर्म के प्रचारक
पश्चिम देशों से आये। फिर भी काथलिकों ने सदा अपने धर्म को उस स्थान की संस्कृति के अनुसार
बनाने का प्रयास किया है। उन्होंने बांगला नृत्य का उदाहरण देते हुए कहा कि पहले
कलीसिया ने इसका विरोध किया था पर बाद में इस नृत्य को अपने पूजन विधि में धन्यवादी
प्रार्थना के रूप स्थान दिया गया। काथलिकों ने सदा यह प्रयास किया है कि स्थानीय
संस्कृति कि रक्षा की जाये प्राय़ः यह देखा गया है कि स्थानीय संस्कृति की अच्छाइयों की
रक्षा के लिये भी मिशनरियों ने अथक प्रयास किये हैं। संगमा ने इस अवसर पर यह भी कहा
कि ईसाई समुदाय ने शिक्षा के क्षेत्र में देश के लिये मह्त्वपूर्ण योगदान दिये हैं। उन्होंने
लोगों को एक सवाल करते हुए कहा कि उन्हें समझ में नहीं आता है कि जब 2 हज़ार वर्षों में
सिर्फ तीन प्रतिशत से भी कम ईसाई हैं तो भी कुछ भारतीय ईसाइयों से क्यों डरते हैं। धर्मपरिवर्तन
के मामले मे बोलते हुए उन्होंने कहा कि धर्म परिवर्तन अंतःकरण की बात है जिसे किसी पर
बल पूर्वक नहीं लादा जा सकता है। उन्होंने यह आशा जतायी है कि ईसाइयों ने शिक्षा
स्वास्थ्य और विकास के क्षेत्र में जो योगदान दिये हैं उसका देश उचित सम्मान देगा और
और ईसाइयों को हिंसा का शिकार नहीं बनाएगा।