वाटिकन सिटीः धर्मग्रन्थ व्याख्या एवं धर्मतत्व विज्ञान को विखण्डित न करने हेतु सन्त
पापा का आग्रह
रोम में पाँच से 26 अक्तूबर तक जारी विश्वधर्माध्यक्षीय धर्मसभा के आचार्यों को मंगलवार
को सम्बोधित करते हुए सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने आग्रह किया कि धर्मग्रन्थ व्याख्या
एवं धर्मतत्त्व विज्ञान को किसी भी प्रकार विखण्डित न किया जाये। उन्होंने कहा कि धर्मग्रन्थ
व्याख्या एवं धर्मतत्त्व विज्ञान के बीच विभाजन करने से बाईबिल धर्मग्रन्थ का पाठ विश्वास
रहित हो सकता है।
सन्त पापा ने धर्मसभा के आचार्यों को बताया कि उनका प्रभाषण
"नाज़रेथ के येसु" नामक उनकी कृति की दूसरी पुस्तक पर आधारित था। उन्होंने आचार्यों से
निवेदन किया कि धर्मग्रन्थ की व्याख्या के लिये द्वितीय वाटिकन महासभा की "देई वेरबुम"
शीर्षक से प्रकाशित निर्देशिका से मार्गदर्शन लिया जाये जिसमें धर्मग्रन्थ की अखण्डता
तथा सम्पूर्ण कलीसिया की जीवन्त परम्परा के अनुकूल विश्वासपूर्वक बाईबिल पाठ का सुझाव
दिया गया है।
सन्त पापा ने कहा कि सामान्य तौर पर धर्मग्रन्थ की अखण्डता पर ध्यान
दिया जाता है किन्तु प्रायः इसके दूसरे पक्ष अर्थात् सम्पूर्ण कलीसिया की जीवन्त परम्परा
की अवहेलना कर दी जाती है। सन्त पापा के अनुसार इस पक्ष की अवहेलना का परिणाम यह होता
है कि बाईबिल अतीत की एक पुस्तक मात्र बनकर रह जाती है और धर्मग्रन्थ व्याख्या इतिहास
लेखन से अधिक और कुछ नहीं होता।
सन्त पापा ने कहा कि कलीसिया का जीवन एवं उसका
मिशन इस बात की मांग करता है कि धर्मग्रन्थ व्याख्या एवं धर्मतत्त्व विज्ञान के बीच इस
प्रकार की द्विविधता पर विजय प्राप्त की जाये क्योंकि दोनों अलग अलग न होकर एक ही वास्तविकता
के दो आयाम हैं।