न्यू यॉर्कः वाटिकन ने सुरक्षा सिद्धान्त के दुरुपयोग की भर्त्सना की
न्यूयॉर्क में जारी संयुक्त राष्ट्र संघ की आमसभा के 63 वें सत्र में सदस्य राष्ट्रों
को सम्बोधित करते हुए सोमवार को वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक महाधर्माध्यक्ष चेलेस्तीनो
मिलियोरे ने कहा कि यद्यपि हर देश का दायित्व है कि वह अपने प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा
का ध्यान रखे तथापि सुरक्षा को अन्धाधुन्ध सैन्य कार्रवाई का बहाना नहीं बनना चाहिये।
उन्होंने स्मरण दिलाया कि सन् 2005 के घोषणा पत्र के अनुसार यदि कोई देश उसके
नागरिकों की सुरक्षा करने में समर्थ नहीं हो तो अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का हस्तक्षेप आवश्यक
हो जाता है। उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि बहुत बार सुरक्षा के लिये उपयोग में
लाई गई भाषा को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाता तथा आक्रमण की कार्यवाही का औचित्य
ठहराया जाता है।
महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि झगड़ों के समाधान के लिये हिंसा का
चयन मानवजाति की विफलता का परिचायक है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा कायम करने के लिये केवल
सैन्य समाधान को न खोजा जाये बल्कि उदार वार्ताओं को प्रोत्साहित कर झगड़ों का निपटारा
किया जाये तथा नैतिकता के आधार पर जनकल्याण की भावना को पोषित किया जाये।
महाधर्माध्यक्ष
ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना एक विश्वव्यापी सरकार रूप में नहीं की गई थी
बल्कि वह विभिन्न देशों के राजनैतिक संकल्प का फल है इसलिये उसका कर्त्तव्य है कि वह
एच.आई.वी. से अनाथ हुए बच्चों, दासता के लिये बेचे गये बच्चों, धर्म, जाति, नस्ल अथवा
वर्ण के नाम पर उत्पीड़ित लोगों की रक्षा हेतु हस्तक्षेप करे। उन्होंने कहा कि बहुत अधिक
समय तक इन लोगों की पुकारों को अनसुना कर दिया गया था किन्तु अब इनकी आवाज़ों को सुनना
अनिवार्य हो गया है।