2008-09-29 17:11:00

देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश


श्रोताओ, रविवार 28 सितम्बर को रोम शहर के परिसर में कास्तेल गोंदोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद के झरोखे से संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने प्रांगण में एकत्र तीर्थयात्रियों को दर्शन दिये तथा उनके साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। इस प्रार्थना से पूर्व उन्होंने अपने सम्बोधन में इस रविवार के लिए निर्धारित सुसमाचार पाठ पर चिंतन प्रस्तुत करते हुए कहाः-

अतिप्रिय भाइयो और बहनो,

आज की पूजन धर्मविधि के सुसमाचार पाठ में हम पाते हैं कि एक पिता अपने दो बेटों को अपनी दाखबारी में काम करने के लिए भेजते हैं। पहला बेटा बिना देर किये हाँ कहता है लेकिन काम पर नहीं जाता है जबकि दूसरा बेटा शुरू में इंकार करता है पर बाद में पश्चाताप कर अपने पिता की इच्छा को पूरा करना स्वीकार करता है। इस दृष्टांत के द्वारा येसु इस बात की पुष्टि करते हैं कि उन पापियों को प्राथमिकता दी जायेगी जो पश्चाताप करते हैं। येसु सिखाते हैं कि मुक्ति के वरदान को प्राप्त करने के लिए हमें विनम्रता की जरूरत है।

फिलिप्पयों को लिखे पत्र में प्रेरित संत पौलुस कहते हैं कि हर व्यक्ति नम्रतापूर्वक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझे। कोई केवल अपने हित का नहीं बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे। संत पौलुस के मनोभाव भी प्रभु येसु के समान हैं जो मानवजाति के प्रति अपने प्रेम के कारण मानव बने और क्रूस पर मरे। यह शब्द एकेनोसोन जिसका अक्षरशः अर्थ है कि येसु ने स्वयं को खाली कर दिया, यह येसु की गहन विनम्रता और अनन्त प्रेम को स्पष्ट करता है। येसु सर्वश्रेष्ठ विनम्र सेवक हैं।

हम संत पापा जोन पौल प्रथम का स्मरण करते हैं जिनका निधन आज ही के दिन 30 वर्ष पूर्व हुआ था। दिवंगत संत पापा लुचियानी ने संत चार्ल्स बोरोमेयो के धर्माध्यक्षीय आदर्श वाक्य विनम्रता को अपने लिए चुना था। इस एक ही शब्द में ख्रीस्तीय जीवन का सार निहित है। यह उस सदगुण की ओर इंगित करता है जो कलीसिया में प्राधिकार के पद पर रहकर सेवा करने के लिए बुलाये गये लोगों में हो। अपने लघु परमाध्यक्षीय काल के चार आमदर्शन समारोहों में से एक समारोह में येसु को प्रिय एक सदगुण का प्रस्ताव करते हुए संत पापा जोन पौल प्रथम ने येसु के इन शब्दों को दुहराया थाः- मुझसे सीखो मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ।

संत पापा ने आगे कहाः- हम उनके इस सदगुण के प्रति कृतज्ञ हैं। संत पापा लुचियानी के लिए केवल 33 दिनों की जरूरत थी कि वे लोगों के दिल में प्रवेश कर सके। वे अपने भाषणों में यथा्र्थ जीवन के उदाहरणों, अपने परिवार की यादों और जनजीवन के विवेक का प्रयोग करते थे। उनकी सादगी, ठोस और स्पष्ट शिक्षा की रचना करने का साधन थे जिसका विस्तार उन्होंने कलीसिया और अनेक धर्मनिरपेक्ष लेखों के कथनों का बहुत बार उपयोग द्वारा किया जिनका वे स्मरण कर सकते थे। हम उनकी विलक्षण स्मरण शक्ति और व्यापक संस्कृति के प्रति कृतज्ञ हैं। वे अद्वितीय धर्मशिक्षक थे। एक अवसर पर उन्होंने कहा था कि हमें ईश्वर के सामने स्वयं को छोटा महसूस करना चाहिए। उनकी माता के सामने बच्चे के समान महसूस करते हुए मुझे लज्जा नहीं है। एक व्यक्ति अपनी माता पर विश्वास करता है। मैं प्रभु पर विश्वास करता हूँ और उन पर जिन्हें उन्होंने मुझपर प्रकट किया है। ये शब्द उनके विश्वास की शक्ति को दिखाते हैं।

हम ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने संत पापा लुचियानी को कलीसिया और संसार को दिया था। हम उनके उदाहरण पर प्रसन्न हों और विनम्रता के उसी भाव के प्रति स्वयं को समर्पित करें। इस सदगुण ने संत पापा लुचियानी को प्रत्येक व्यक्ति, विशेष कर बच्चों और जो कलीसिया से दूर हैं उनके समीप लाया।

इतना कहकर संत पापा ने उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सब पर प्रभु की शांति का आह्वान कर सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।








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