देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश
श्रोताओ, रविवार 21 सितम्बर को, रोम शहर के परिसर में कास्तेल गोन्दोल्फो स्थित प्रेरितिक
प्रासाद के झरोखे से, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, प्राँगण में एकत्र तीर्थयात्रियों
को दर्शन दिये तथा उनके साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। इस प्रार्थना से पूर्व अपने
सम्बोधन में सन्त पापा ने, इस रविवार के लिये निर्धारित सुसमाचार पाठ पर चिन्तन करते
हुए कहाः
“अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, शायद आपको याद होगा, कलीसिया के परमाध्यक्ष
रूप में, मेरी नियुक्ति के दिन, सन्त पेत्रुस महामन्दिर के प्राँगण में एकत्र जनसमुदाय
को सम्बोधित करते हुए, सहज ही मेरे मुख से निकल पडा था कि मैं तो केवल प्रभु की दाखबारी
में काम करनेवाला एक मज़दूर मात्र हूँ। ठीक वैसे ही आज के सुसमाचार में येसु दाखबारी
के उस मालिक का दृष्टान्त सुनाते हैं जो दिन की विभिन्न घड़ियों में मज़दूरों को अपनी
दाखबारी में काम पर लगाता है और सन्ध्या होने पर सबको एक समान यानि कि एक दिनार वेतन
देता है और इस प्रकार दिन के प्रारम्भ में काम पर लगाये मज़दूरों के विरोध को भड़काता
है। यह स्पष्ट है कि वह दिनार अनन्त जीवन का प्रतिनिधित्व करता है, अनन्त जीवन अर्थात
वह वरदान जिसे ईश्वर ने सब मनुष्यों के लिये सुरक्षित रखा है। यथातथ्य, जिन्हें सबसे
अन्तिम समझा जाता है और यदि वे अपनी इस स्थिति को स्वीकार करते हैं तो वे अवश्य ही प्रथम
होंगे जबकि जो व्यक्ति स्वतः को सबसे अग्रणी मानते हैं उनपर सबसे अन्तिम बने रहने का
ख़तरा बना रहता है।"
सन्त पापा ने आगे कहाः "इस दृष्टान्त का पहला सन्देश इस
बात में निहित है कि दाखबारी का मालिक, एक प्रकार से, बेरोज़गारी को सहन नहीं करताः वह
चाहता है कि सबके सब उसकी दाखबारी में काम करें। वस्तुतः, बुलाये जाना ही पहला पुरस्कार
हैः प्रभु की दाखबारी में काम कर सकना, उनकी सेवा को समर्पित रहना तथा उनके कार्य में
सहयोग करना अपने आप में एक अनमोल पुरस्कार है जो हर थकावट को दूर कर देता है। किन्तु
यह वही समझ सकता है जो प्रभु से तथा ईशराज्य से प्रेम करता है; जबकि वह व्यक्ति जो केवल
धन कमाने के लिये काम करता है वह इस अनमोल कोष के मूल्य को कभी भी आँक नहीं सकता।"
इस
दृष्टान्त का विवरण प्रस्तुत करनेवाले हैं, प्रेरित एवं सुसमाचार लेखक, सन्त मत्ती जिनका,
संयोग से, आज हम पर्व भी मनाते हैं। इस तथ्य को मैं रेखांकित करना चाहता हूँ कि सन्त
मत्ती ने खुद उक्त कोष का अनुभव प्राप्त किया था। वस्तुतः, येसु द्वारा बुलाये जाने से
पूर्व वह शुल्क जमा करनेवाला एक कर्मचारी था जिन्हें, उस युग में, प्रभु की दाखबारी से
बहिष्कृत, पापी समझा जाता था। किन्तु उस क्षण सबकुछ बदल गया जब शुल्क जमा करने हेतु
लगे उसके मेज़ के पास से येसु गुज़रे, उन्होंने उसकी ओर दृष्टि लगाई और कहा "मेरे पीछे
चले आओ"। मत्ती उठे और उनके पीछे हो लिये। कर जमा करनेवाले एक साधारण व्यक्ति से वे तुरन्त
ख्रीस्त के शिष्य बन गये। ईश्वर की तर्कणा से वे अन्तिम से प्रथम बन गये, ऐसी तर्कणा
जो, सौभाग्यवश, मनुष्यों की तर्कणा से बिल्कुल अलग है। नबी इसायाह के मुख से प्रभु ईश्वर
कहते हैं: "तुम लोगों के विचार मेरे विचार नहीं हैं और मेरे मार्ग तुम लोगों के मार्ग
नहीं हैं। सन्त पौल ने भी, जिनकी इस वर्ष हम विशिष्ट जयन्ती मना रहे हैं, प्रभु की दाखबारी
में काम करने के लिये बुलाये जाने के आनन्द का अनुभव प्राप्त किया। वास्तव में उन्होंने
बहुत काम किया। परन्तु जैसा कि उन्होंने खुद स्वीकार किया है, प्रभु की कृपा उनमें क्रियाशील
हुई, ऐसी कृपा जिसने उन्हें कलीसिया पर अत्याचार करनेवाले से लोगों का महाप्रेरित बना
दिया और फिलिप्पियों को प्रेषित अपने पत्र में उन्हें यह कहने पर मजबूर कर दिया: "मेरे
लिये तो जीवन है – मसीह, और मृत्यु है उनकी पूर्ण प्राप्ति।" किन्तु इसके तुरन्त बाद
कहते हैं: "यदि मैं जीवित रहूँ, तो सफल परिश्रम कर सकता हूँ, इसलिये मैं नहीं समझ पाता
हूँ कि क्या चुनूँ।" इस प्रकार सन्त पौल ने इस बात को भलीभाँति समझ लिया था कि इस धरती
पर प्रभु के लिये काम करना अपने आप में एक पुरस्कार है।"
चिन्तन के अन्त
में सन्त पापा ने इस प्रकार प्रार्थना की, उन्होंने कहाः ........... "पवित्र कुँवारी
मरियम, जिनकी भक्ति का सौभाग्य विगत सप्ताह लूर्द नगर में मुझे मिला, प्रभु की दाखबारी
की पूर्ण अंकुर हैं। उनसे ही ईश्वरीय प्रेम का धन्य फल प्रस्फुटित हुआ जो है, येसु, हमारे
मुक्तिदाता। मरियम हमारी मदद करें ताकि हम प्रभु की बुलाहट का प्रत्युत्तर सदैव हर्षपूर्वक
प्रदान करें तथा स्वर्गराज्य के लिये काम करने में सुख प्राप्त करें।"
इतना
कहकर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना
का पाठ किया तथा सब पर प्रभु की शांति का आह्वान कर सबको अपना प्रेरितिक आर्शीवाद प्रदान
किया --------------------------------------
देवदूत प्रार्थना के बाद सन्त पापा
ने करीबियाई देशों एवं अमरीका में फे, गुस्ताव, हन्ना और ईके तूफानों से पीड़ित लोगों
का स्मरण करते हुए कहाः "इन सब प्रिय लोगों को मैं अपनी विशिष्ट प्रार्थनाओं का आश्वासन
देता हूँ। मेरी आशा है कि सभी तूफान पीड़ित क्षेत्रों को शीघ्रातिशीघ्र उचित सहायता उपलब्ध
कराई जायेगी। प्रभु ईश्वर से याचना है कि कम से कम इन परिस्थितियों में, अन्य बातों की
चिन्ता से दूर रहकर, एकात्मता एवं भ्रातृ प्रेम का प्रदर्शन किया जायेगा।"
श्रोताओ,
25 सितम्बर से संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के 63 वें सत्र में मानवाधिकार एवं निर्धनता
पर बातचीत होनेवाली है, इसी के सन्दर्भ में विश्व नेताओं का आव्हान करते हुए सन्त पापा
ने कहाः "इस महत्वपूर्ण सत्र में विश्व के नेता उपस्थित होंगे इन सबसे मेरा आग्रह है
कि समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग पर प्रहार करनेवाली निर्धनता, भुखमरी, अज्ञान और रोगों के
अभिशाप को मिटाने के लिये उपयुक्त नीतियाँ बनाई जायें तथा उनपर अमल किया जाये। यद्यपि
वर्तमान विश्व की बिगड़ती अर्थव्यवस्था के समक्ष ऐसा करना बलिदान एवं त्याग से खाली नहीं
होगा तथापि मेरा अटल विश्वास है कि यह उन देशों के विकास हेतु लाभकर सिद्ध होगा जिन्हें
विदेशी सहायता की ज़रूरत है और साथ ही इससे सम्पूर्ण धरती पर जन कल्याण एवं शांति स्थापित
हो सकेगी।"