2008-09-13 19:17:42

फ्राँस में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें की प्रेरितिक यात्रा पर एक रिपोर्ट 13 सितम्बर


रिपोर्ट- जुलयट क्रिस्टफर, कमल बड़ा और फादर जस्टिन तिर्की
 
श्रोताओ, विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें इस समय फ्राँस की चार दिवसीय प्रेरितिक यात्रा पर हैं। शुक्रवार को उन्होंने रोम से पेरिस के लिये प्रस्थान किया था। लोकभक्ति एवं विश्वास और साथ ही प्रबल सांस्कृतिक तात्पर्यों से चिह्नित फ्राँस की राजधानी पेरिस तथा लूर्द नगर की प्रेरितिक यात्रा शुक्रवार प्रातः नौ बजे रोम के फ्यूमिचीनो हवाई अड्डे से आरम्भ हुई थी तथा सोमवार अपरान्ह, 15 सितम्बर को समाप्त हो जायेगी। इस यात्रा के माध्यम से सन्त पापा, विरोधाभासों से परिपूर्ण फ्राँसिसी समाज द्वारा प्रस्तुत नई चुनौतियों का सामना कर रही फ्राँस की कलीसिया को मार्गदर्शन देना चाहते हैं। फ्राँस की 76 प्रतिशत जनता काथलिक धर्मानुयायी है जो पश्चिमी गोलार्द्ध के अन्य नागरिकों के सदृश ही द्रुत गति से आगे बढ़ती आधुनिक जगत की नवीन तकनीकियों एवं नवीन प्रौद्योगिकी के बीच खो जाने की आशंकाओं से घिरी रहने के बावजूद जीवन का अर्थ खोज रही है। इटली से बाहर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें की यह दसवीं अन्तरराष्ट्रीय यात्रा है जिसका प्रमुख कारण लूर्द नगर में मरियम दर्शन की 150 वीं वर्षगाँठ के समारोहों का नेतृत्व करना है।

शुक्रवार को पेरिस में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के आगमन पर महानगर के सभी गिरजाघरों में घण्टे बजाकर उनका भव्य स्वागत किया। पेरिस के ओरली हवाई अड्डे से पेरिस स्थित परमधर्मपीठीय प्रेरितिक राजदूतावास तक और फिर वहाँ से फ्राँस के राष्ट्रपति भवन एलिसी पैलेस तक सैकड़ों प्रशंसकों ने मार्ग के ओर छोर पंक्तिबद्ध रहकर जयनारे लगाये। ................................
.............................. उमंग और उत्साह के साथ बेनेडिक्ट 16 वें का स्वागत किया गया तथापि स्थानीय समाचार पत्रों में बताया गया कि सन्त पापा बेनेडिक्ट के दर्शन के लिये पहुँचा जनसमुदाय किसा भी मायने में उस जनसमुदाय का मुकाबला नहीं कर पाया जो उनके पूर्वाधिकारी करिश्माई सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय की एक झलक पाने के लिये सड़कों पर उमड़ पड़ता था। स्व. सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने आठ बार फ्राँस की प्रेरितिक यात्राएँ की थी तथा देश में काथलिक पहचान को पुनर्जाग्रत करने का श्रेय प्राप्त किया था।

कलीसिया के परमाध्यक्ष रहते प्रथम बार शुक्रवार को फ्रांस पहुँचते ही सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें राष्ट्रपति भवन एलिसी पैलेस में राष्ट्रपति सरकोज़ी से औपचारिक मुलाकात की। सन्ध्या पाँच बजे उन्होंने पेरिस स्थित बेरनारडिन कॉलेज में संस्कृति जगत के 700 ज्ञानियों से मुलाकात कर उन्हें अपना सन्देश दिया। इनमें यूनेस्को तथा यूरोपीय संगठन के प्रतिनिधियों के साथ साथ अन्य धर्मों के नेता भी सम्मिलित थे। साबात्त या विश्राम दिवस मनाने वाले यहूदी नेता इससे पूर्व ही सत पापा से मुलाकात कर चुके थे। इस अवसर पर सन्त पापा ने यूरोप से आग्रह किया कि वह अपनी ख्रीस्तीय धरोहर को अलग न छोड़े क्योंकि ईश्वर की खोज उसी प्रकार आज भी यूरोपीय महाद्वीप की नींव होनी चाहिये जैसे वह अतीत में थी। उन्होंने कहा संविधान में घोषित कलीसिया और राज्य के पृथक्करण पर धर्म द्वारा किसी प्रकार का ख़तरा नहीं है। सन्त पापा के अनुसार यदि यूरोप यह समझने लगता है कि आधुनिक जीवन में ईश्वर की कोई भूमिका नहीं है तो वह आध्यात्मिक रूप से पराजित हो जायेगा तथा आत्मगत निरंकुशता एवं रूढ़िवादी धर्मान्धता का शिकार बन जायेगा। सन्त पापा के व्याख्यान के कतिपय अंश...

यूरोप में विभिन्न सांस्कृतिक और राजनीतिक उतार चढ़ाव के बावजूद मठवाद ने ही प्राचीन संस्कृति को सुरक्षित रखा और एक नवीन संस्कृति के उद्भव और विकास में अपना योगदान दिया है।

मठवासी धर्मग्रंथ के दिव्य शब्दों के द्वारा ईश्वर के करीब आते थे और इन्हीं दिव्य शब्दों पर गहन मनन-चिन्तन के द्वारा वे ईश्वर के करीब जाते थे। ईश्वर को और अधिक जानने के लिए उन्होंने पुस्तकालयों की स्थापना की। लोग इन्हीं मठों में ईश्वर के बारे में ज्ञान हासिल करने लगे और उसी की सेवा करने के लिये भी अग्रसर हुए।

ईश्वरीय शब्द के बारे में बोलते हुए संत पापा ने कहा कि इस प्रकार ईश्वर के दिव्य शब्द न केवल व्यक्तिगत मुक्ति का साधन बना पर इसने आम लोगों के लिये भी मुक्ति पाने का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने कहा कि धर्मग्रंथ के व्याख्या की ज़रुरत है और इसे ठीक से समझने के लिये इसके संदर्भ को भी समझाये जाने की आवश्यकता है।

मठवाद की दूसरे पहलु के बारे में बोलते हुए संत पापा ने श्रम या कार्य करने की महत्ता पर बल दिया। एक समय था जब यह समझा जाता था कि श्रम या कार्य करने का दायित्व सिर्फ दासों का है और ज्ञान की बातें वही कर सकता है जो स्वतंत्र है पर मठवाद ने इस परंपरा को बदल दिया। उन्होंने शब्द और श्रम दोनों को मह्त्वपूर्ण स्थान दिया।

संत पापा ने आगे कहा कि यूरोप के लोग आध्यात्मिक रूप से पराजित हो जायेंगे अगर वे ये सोचने लगे प्रगति के इस युग में ईश्वर की ज़रुरत नहीं है। इतिहास पर गौर किया जाये ये बात बात स्पष्ट हो जाती है कि अगर किसी तथ्य ने यूरोप को प्रगति की ओर आगे बढ़ाया है वह निश्चय ही ईश्वर की अनवरत खोज और ईश्वर पर आस्था ही हो सकता है।

ईश्वर की लगातार खोज करना आज के यूरोप के लिये भी उतना ही मह्त्वपूर्ण है जितना प्राचीन युग में था। अगर यूरोप इस बात को नज़रअन्दाज़ कर दे तो या तो वह आत्मगत स्वेच्छाचारी हो जायेगा या कट्टर धर्मान्धता का शिकार हो जायेगा।

पारम्परागत काथलिक, फ्राँस में कलीसिया तथा राज्य के बीच कठोर पृथक्करण कायम है। फाँस की कलीसिया इस समय पुरोहितों की कमी तथा रविवारों को गिरजाघरों में अनुयायियों की हाज़िरी जैसी समस्याओं से जूझ रही है। तथापि हाल के वर्षों में, विशेष रूप से आप्रवासियों द्वारा इस्लाम के विकास ने, धर्म को एक बार फिर जन जीवन का मुद्दा बना दिया है तथा काथलिक धर्मानुयायी खुलकर सामाजिक विषयों पर बात करने लगे हैं। स्वयं राष्ट्रपति सरकोज़ी ने शुक्रवार को सन्त पापा को सम्बोधित शब्दों में कहा था कि ख्रीस्तीय विचारधारा के अपने दीर्घकालीन इतिहास की उपेक्षा करना फाँस का दिवालियापन होगा। उन्होंने कहा था कि सभी धर्म मानव आशा को पोषित करते हैं। सरकोज़ी के अनुसार आध्यात्मिकता की खोज से प्रजातंत्र को किसी प्रकार का ख़तरा नहीं हो सकता।

बेरनारडिन कॉलेज में संस्कृति जगत के विद्वानों को अपना सन्देश देने के बाद सन्त पापा ने पेरिस के नोत्रदाम महागिरजाघर में पुरोहितों, धर्मसंघियों एवं गुरुकुल छात्रों को दर्शन देकर उन्हें भी सन्देश दिया। इस अवसर पर सन्त पापा के प्रवचन के कुछ अंश......

पेरिस धर्मप्रांत के मदर चर्च नोट्रदाम महागिरजाघर में हम जमा हुए हैं, हमारे मध्य ईश्वर की उपस्थित के जीवंत चिह्न ऱूप में यह शहर के मध्य स्थित है। इस सुंदर इमारत के लिए मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ। यहाँ अनेक महान धार्मिक समारोह और सामाजिक घटनाएँ घटी हैं। नोट्रदाम महागिरजाघर आपके देश की विरासत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक है।

प्रिय पुरोहित बंधुओ, ईश वचन का पठन और इस पर मनन चिंतन करने में अधिक समय व्यतीत करने से नहीं डरें। दिव्य विवेक की अभिव्यक्ति में यदि यह वचन आपके जीवन का साथी बनता है तो यह आपका अच्छा परामर्शदाता बनेगा और आपको उत्साह मिलेगी।

गुऱूकुल छात्रो, आप जो पुरोहिताई की तैयारी कर रहे हैं आपको ईश वचन एक कीमती निधि के रूप में दी जाती है। इस पर नियमित चिंतन कर आप ख्रीस्त के जीवन में प्रवेश करते हैं जिसकी आप साक्षी देंगे। ईश वचन के प्रति सदैव अपनी प्यास को जगाये रखें।

अतिप्रिय उपयाजको, ईशदचन से प्रेम करना जारी रखें। सुसमाचार को आपके जीवन का, पड़ोसियों के प्रति सेवा का तथा आपके समुदाय का केन्द्र बनायें। अपनी मैत्री और का्र्यों द्वारा पुरोहितों को सहयोग देते हुए आप ईश वचन की अनन्त शक्ति के जीवित साक्षी बनें।

धर्मसमाजियो, समर्पित जीवन जीनेवाले स्त्री पुरूष ईश वचन में अभिव्यक्त ईश्वरीय प्रज्ञा से जीवन प्राप्त करते हैं। माता मरियम ईश वचन के प्रति निष्ठा का सर्वोत्तम उदाहरण हैं। हम उन्हें पू्र्ण विशवास और भरोसे से पुकारते हैं पवित्र मरियम, ईश्वर की माँ, हमारी माँ, हमें विश्वास करना, प्रेम करना और आशा करना सिखाइये, हमें ईश्वरीय राज्य का मार्ग दिखाइये।

शुक्रवार देर सन्ध्या, पेरिस स्थित सिएने नदी के बाँये तट पर नोत्र दाम महागिरजाघर के पृष्टभाग में विस्तृत मैदान पर एकत्र 40,000 युवाओं ने ध्वजों को फहराकर, जयनारे लगाये तथा करतल ध्वनि से अपने बीच सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का स्वागत किया। .............................नदी के तट पर काथलिक कलीसिया के आयोजकों ने विशाल टेलेविज़न के पर्दों का इन्तज़ाम किया था ताकि सभी इच्छुक सन्त पापा को देख एवं सुन सकें। युवाओं को दिये सन्देश में भी सन्त पापा ने रूढ़ीवादी धर्मान्धता से सावधान रहने का परामर्श दिया। चिकित्सा शास्त्र की छात्रा सोफी गाओ ने सन्त पापा के शब्दों को समर्थन देते हुए कहा कि हमारी धन सम्पन्नता ने हमारी आध्यात्मिकता को बहुत नुकसान पहुँचाया है। उनके अनुसार लोग स्वतंत्रता की बात करते हैं किन्तु आचरण भेड़ों के समान करते हैं। उन्होंने कहा कि यह अच्छा ही है कि सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें जैसा कोई व्यक्ति है जिनमें यह साहस है कि वे हमें हमारी ख्रीस्तीय जड़ों की याद दिलायें।
युवाओं को दिये सन्त पापा के सन्देश के प्रमुख अंश...............

नोट्र डाम महागिरजाघर में प्रार्थनामय समारोह के बाद आपका उत्साहवर्द्धक अभिवादन इस संध्या हमारी मुलाकात को उत्सवमय बनाता है। यह मुझे जुलाई माह में सिडनी में आयोजित विश्व युवा दिवस समारोह की याद दिलाता है जिसमें आपलोगों में से कुछ युवा उपस्थित थे। इस संध्या मैं दो बिन्दुओं पर अपने विचार व्यक्त करना चाहता हूँ। प्रथम बिन्दू सिडनी के लिए चुने गये शीर्षक से जुड़ा है। प्रेरित चरित के अध्याय 1 का 8 वाँ पद तुम्हें शक्ति प्राप्त होगी जब पवित्र आत्मा तुम पर उतरेगा और तुम मेरे साक्षी बनोगे। सिडनी में अनेक युवाओं ने प्रत्येक ख्रीस्तीय के जीवन में पवित्र आत्मा के महत्व की पुर्नखोज की। आत्मा हमें ईश्वर के साथ हमारे संबंध को गहरा बनाता है जो यथार्थ मानव जीवन के स्रोत हैं। ख्रीस्त को पाने के लिए स्वयं को पवित्र आत्मा को समर्पित करें। विश्वास के सत्य को गहराई से समझने के लिए मैं आपको दृढ़ीकरण संस्कार के महत्व पर चिंतन करने के लिए प्रोत्साहन देता हूँ। यह आपको प्रौढ़ विश्वासी जीवन में आगे बढ़ाता है। इस संस्कार को गहराई से समझना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि अपने विश्वास की गहराई और गुणवत्ता का मूल्यांकन कर इसे और मजबूत बनायें। सुसमाचारी जीवन जीने तथा इसकी घोषणा करने का साहस पायें।

संत पौलुस को समर्पित वर्ष में मैं आपको दूसरी निधि सौंपना चाहता हूँ वह है क्रूस का रहस्य। ख्रीस्तीयों के लिए क्रूस ईश्वर की प्रज्ञा और ख्रीस्त के मुक्तिदायी उपहार में व्यक्त अनन्त प्रेम का प्रतीक है जो संसार के जीवन के लिए, विशिष्ट रूप से आप में से प्रत्येक व्यक्ति के लिए क्रूसित हुए और जी उठे। यह विस्मयकारी प्रकटन क्रूस की वंदना और आदर करने के लिए आपको प्रेरित करे। यह न केवल ईश्वर में आपके जीवन ऐर मुक्ति का प्रतीक है बल्कि जैसा कि आप समझेंगे यह मानवीय पीड़ा की मौन साक्षी तथा हमारी सब आशाओं का अद्वितीय और अनमोल अभिव्यक्ति है। यदा कदा क्रूस हमारी मानवीय सुरक्षा को खतरे में डालती प्रतीत होती है तथापि सबसे ऊपर यह ईश्वरीय कृपा की घोषणा करती तथा हमारी मुक्ति की पुष्टि करती है। ईश्वर के प्रेम के रहस्य को समझने के लिए पवित्र आत्मा आपको सक्षम बनायेंगे।

शनिवार को फाँस में अपनी यात्रा के दूसरे दिन सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने पाँच शैक्षणिक अकादमियों को समेटनेवाले इन्सतीतूत दे फ्राँस की भेंट की। कार्डिनल राटसिंगर रहते सन्त पापा इस संस्था के नीति शास्त्र विभाग के सदस्य रह चुके हैं। इस संस्था की भेंट के बाद एसप्लानादे देस इनवालिदेस उद्यान तक लगभग डेढ़ किलो की दूरी सन्त पापा ने अपनी पारदर्शी मोटरगाड़ी से पूरी की तथा मार्ग के ओर छोर उन्हें देखने को आतुर लोगों को दर्शन देकर कृतार्थ किया। एसप्लानादे देस इनवालिदेस उद्यान के स्मारक भवनों का निर्माण 17 वीं शताब्दी में सम्राट लूई 14 वें द्वारा युद्ध में विंकलांग हुए सैनिकों के लिये करवाया गया था। इसी उद्यान में नापेलियोन बोनापार्ट की भी समाधि है। दूर दूर तक विस्तृत इसी उद्यान में सन्त पापा ने पेरिस के काथलिक धर्मानुयायियों के लिये ख्रीस्तयाग अर्पित किया जिसमें लगभग दो लाख भक्त उपस्थित हुए। ख्रीस्तयाग प्रवचन में उन्होंने धन, सम्पत्ति एवं सत्ता को देवतुल्य मानने की आधुनिक जगत की प्रवृति पर खेद व्यक्त किया। इस अवसर पर सन्त पापा के प्रवचन के कुछ अंश...................

हमें चाहिये कि हम यूखरिस्त को अपने जीवन का केन्द्र बनायें, उसका आदर करें और येसु ने इस संस्कार के द्वारा हमें जो आशा प्रदान की है उसी पर आस्था रखते हुए अपना जीवन जीयें।

यूखरिस्तीय बलिदान धन्यवादी बलिदान है जिसके द्वारा हम येसु मसीह से एक हो जाते हैं और दुनिया के अन्य लोग हमारे भाई-बहन बन जाते हैं। इसके लिये हम सब मिल कर ईश्वर को धन्यवाद देते हैं।

जब भी हम यूखरिस्तीय बलिदान में सहभागी होते हैं तो हम यही घोषणा करते हैं कि ईश्वर ही हमारा आनन्द है । वही हमें उन मूल्यों को सिखाता और जीवन पथ दिखाता है जिसके द्वारा हम जीवन की सच्ची खुशी प्राप्त कर सकते हैं।

पवित्र मिस्सा हम सबों को वह शक्ति प्रदान करता है जिससे हम सदा ईश्वर की इच्छा के अनुसार निर्णय कर सकें और सदैव ईश्वर को धन्यवाद देते हुए अपना जीवन बिता सकें।

अपने जीवन को ईश्वर को चढा़ने से न घबराइये। ईश्वर युवाओं को बुला रहें है उनसे भी मेरी अपील है कि वे ईश्वर के बुलावे का ज़वाब दिये बिना जीवन में आगे न बढ़ें।

मैं आप लोगों को विश्वास दिलाता हूँ कि ईश्वर पर आशा करते रहने से बढ़कर और बड़ी चीज़ इस दुनिया में और कुछ भी नहीं है। इसलिये प्रभु पर पूरी आशा रखते हुए भला और अच्छा करते रहिये और बुराइयों से सदा दूर रहिये। ईश्वर सदा आपको प्रसन्न रहने का ज्ञान प्रदान करे और उसके अनुसार जीवन जीने की शक्ति से भर दे।

पुलिस ने सुरक्षा के कारण पेरिस महानगर के इर्द गिर्द कई सड़कों, मेट्रो स्टेशनों एवं विद्यालयों को बन्द कर दिया है। शनिवार अपरान्ह सन्त पापा पेरिस के ओरली हवाई अड्डे से तारबेस के लिये प्रस्थान कर रहे हैं। जहाँ से 14 किलो मीटर की दूरी पर ही फ्राँस का लूर्द नगर है जो 1858 ई. से मरियम दर्शनों के कारण विश्व विख्यात काथलिक तीर्थ स्थल बन गया है। मरियम दर्शन की 150 वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आयोजित समारोहों का नेतृत्व करने के लिये ही सन्त पापा की फ्राँस यात्रा का आयोजन किया गया है। लूर्द में मरियम दर्शन तथा वहाँ होनेवाले सन्त पापा के कार्यक्रमों पर हम अपने अगले प्रसारण में रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे, अवश्य सुनियेगा।








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