फ्राँस में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें की प्रेरितिक यात्रा रिपोर्ट - 12 सितंबर
रिपोर्टः- जुलयट क्रिस्टफर फा.जस्टिन तिर्की
शुक्रवार को
विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने फ्राँस की
चार दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के लिये रोम से प्रस्थान किया। लोकभक्ति एवं विश्वास और
साथ ही प्रबल सांस्कृतिक तात्पर्यों से चिह्नित फ्राँस की राजधानी पेरिस तथा लूर्द नगर
की प्रेरितिक यात्रा शुक्रवार प्रातः नौ बजे रोम के फ्यूमिचीनो हवाई अड्डे से आरम्भ हुई
तथा सोमवार अपरान्ह, 12 सितम्बर को समाप्त हो जायेगी।
इस यात्रा के माध्यम से
सन्त पापा, विरोधाभासों से परिपूर्ण फ्राँसिसी समाज द्वारा प्रस्तुत नई चुनौतियों का
सामना कर रही फ्राँस की कलीसिया को मार्गदर्शन देना चाहते हैं। इटली से बाहर सन्त पापा
बेनेडिक्ट 16 वें की यह दसवीं अन्तरराष्ट्रीय यात्रा है जिसका प्रमुख कारण लूर्द नगर
में मरियम दर्शन की 150 वीं वर्षगाँठ के समारोहों का नेतृत्व करना है।
यूरोपीय
महाद्वीप में बसे फाँस की कुल आबादी छः करोड़ 13 लाख, पचास हज़ार है जिनमें, सन् 2005
की जनसांख्यकि के अनुसार, 32 लाख, 63 हज़ार 186 विदेशी हैं।
प्राचीन काल से फ्राँस
के अधिकांश लोग काथलिक धर्मानुयायी रहे हैं किन्तु आधुनिक जगत में ज़ोर पकड़ती धर्म के
प्रति उदासीनता के परिणामस्वरूप बहुतों ने धर्म का परित्याग कर दिया है।
अस्तु,
इस समय लगभग 76 प्रतिशत फ्राँस की जनता काथलिक धर्मानुयायी है, 14 प्रतिशत यहाँ नास्तिक
अर्थात् किसी भी धर्म को न मानने वाले हैं, 5 प्रतिशत इस्लाम धर्मानुयायी हैं, दो प्रतिशत
प्रॉटेस्टेण्ट ख्रीस्तीय, एक प्रतिशत यहूदी तथा 1.3 प्रतिशत अन्य धर्मों के अनुयायी हैं।
फ्राँस
की आधिकारिक भाषा फ्रेंच है। यह यूरोपीय संगठन का सदस्य देश है जहाँ यूरोपीय मुद्रा यूरो
का प्रचलन है।
आल-इतालिया के ए. 321 विमान द्वारा रोम से पेरिस तक की दूरी
दो घण्टे और दस मिनट में पूरी की गई। पेरिस के ओरली हवाई अड्डे पर स्वयं फ्राँस के राष्ट्रपति
निकोलस सारकोज़ी ने अपने यहाँ पधारे लब्धप्रतिष्ठित मेहमान का भावपूर्ण स्वागत किया।
वैसे
नयाचार के अनुसार राष्ट्रपति को हवाई अड्डे पर उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं थी किन्तु
राष्ट्रपति ने स्वयं इसकी इच्छा जताई तथा सन्त पापा का स्वागत करने पहुँचे इसे महत्वपूर्ण
माना जा रहा है।
विगत दिसम्बर माह में वाटिकन की यात्रा के दौरान राष्ट्रपति सरकोज़ी
ने धर्मपालन एवं विश्वास तथा फ्राँसिसी समाज के बीच सन् 1905 से कानूनन पृथकता पर प्रश्न
उठाकर विवाद उत्पन्न कर दिया था। देश की संस्कृति में काथलिक कलीसिया की सशक्त भूमिका
के पुनरावलोकन तथा लोगों के जीवन में काथलिक कलीसिया की भागीदारी का उन्होंने आव्हान
किया था। सन्त पापा सरकोज़ी के इस सुझाव के विषय में क्या कहते हैं इसे सुनने के लिये
सभी उत्सुक हैं।
पेरिस समयानुसार प्रातः सवा 11 बजे सन्त पापा पेरिस के ओरली
हवाई अड्डे पहुँचे। राष्ट्रपति सरकोज़ी के अतिरिक्त यहाँ प्रधान मंत्री फ्राँसुवा फिलोन,
उच्च सरकारी अधिकारियों तथा कलीसिया के वरिष्ठ धर्माधिकारियों ने सन्त पापा का भव्य स्वागत
किया।
सन्त पापा के हवाई अड्डे पर उतरते ही वाटिकन एवं फाँस के राष्ट्रीय गीतों
की धुनें बजाई गई तथा सैन्य शानो-शौकत सहित देश में पधारे खास मेहमान को सलामी देकर उनके
प्रति हार्दिक सम्मान का प्रदर्शन किया गया।
यहाँ उपस्थित गण्नमान्य अधिकारियों
से मुलाकात के बाद सन्त पापा ने, 25 किलो मीटर दूर, पेरिस स्थित परमधर्मपीठीय प्रेरितिक
राजदूतावास का रुख किया। कुछ देर बाद वे प्रेरितिक राजदूतावास से फ्रांस के राष्ट्रपति
भवन एलिसी पैलेस गये जहाँ स्थित राजदूत भवन में उन्होंने राष्ट्रपति सरकोज़ी से औपचारिक
मुलाकात की।
दोनों नेताओं के बीच बातचीत के बाद उपहारों का आदान प्रदान हुआ तथा
राष्टपति भवन में उपस्थित अधिकारियों ने सन्त पापा के साथ तस्वारें खिंचवाई। तदोपरान्त
औपचारिक स्वागत समारोह शुरु हुआ।
इस अवसर पर राष्टपति सरकोज़ी ने सन्त पापा के
आदर में अभिवादन पत्र पढ़कर सम्पूर्ण फ्राँस तथा उसकी जनता की ओर से देश में आने के लिये
सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के प्रति आभार प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि आधुनिक विश्व
की कठोर चुनौतियों का सामना करते फ्राँस के लोग सन्त पापा के प्रज्ञापूर्ण शब्दों को
सुनने के लिये उत्सुक हैं।
कलीसिया के परमाध्यक्ष रूप में प्रथम बार फ्राँस की
यात्रा करनेवाले सत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने इस अवसर पर कहाः
राष्ट्रपति महोदय,
देवियो, सज्जनों और मेरे दोस्तो, संत पापा के पद ग्रहण करने के बाद यह मेरे लिये पहला
सुअवसर है जब मैंने फ्रांस की धरती पर अपने कदम रखे हैं। आपके स्वागत, सम्मान और प्रेम
से मेरा मन-दिल गदगद हो उठा है।
मैं आज फ्रांस के लोगों को यह बताना चाहता हूँ
कि आपलोगों के लिये मेरे दिल में विशेष जगह है क्योंकि फ्रांस ने दो हज़ार वर्षों के
अन्तराल में काथलिक कलीसिया के लिये कई महत्वपूर्ण योगदान दिये हैं।
मेरे यहाँ
आने का ख़ास मकसद है कि मैं लोगों के साथ लूर्द में कुँवारी माता मरियम के दर्शन के एक
सौ पचास वर्षीय जुबिली समारोह में हिस्सा ले सकूँ और विश्वास और श्रद्धा से ओत-प्रोत
विश्व भर से आये लाखों मरिया भक्तों के साथ मिल कर विश्व के लिये प्रार्थना कर सकूँ।
वैसे
तो मैं मेरी पढ़ाई और कलीसिया के कुछ अन्य दायित्वों को संभालने के सिलसिले में फ्रांस
के साथ जुड़ा ही रहा हूँ। आज मैँ एक विशेष खुशी के साथ यहाँ आया हूँ ताकि मैं इस देश
की विशेष धार्मिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर को सम्मान दे सकूँ जिससे न केवल फ्रांस
के निवासी लाभान्वित हुए है पर फ्रांसीसी विचारकों ने विश्व के लोगों पर एक विशेष छाप
छोड़ रखी है।
संत इरेनियुस को हम कैसे भूल सकते हैं जो लियोन्स के धर्माध्यक्ष
बने और जिन्होंने अपनी किताब ' अडभेरसुस हायरेसेस ' में ख्रीस्तीय विश्वास का जोरदार
समर्थन और प्रचार किया।
इतना ही नहीं फ्रांस ने कई महात्माओं, प्रोफेसरों, धर्म
समाजी संस्थापकों और प्रतिलिपिकों को हमें दिये हैं, जिनके द्वारा गरीबों और ज़रुरतमंदों
की सेवा हो पायी है और काथलिक कलीसिया सुदृढ़ हुई है।
आज फ्रांस में जितने गिरजाघरों,
महागिरजघरों और मठों का निर्माण हो चुका है और यहाँ के शहरों में जो शांत वातावरण व्याप्त
है यह यही दिखाता है कि यहाँ के लोगों में उस पिता भगवान के प्रति कितना प्यार है जो
हमारे जीवन का मालिक है।
फ्रांस की कलीसिया में कम से कम एक बात तो बिल्कुल साफ
तौर से दिखाई पड़ती है वह यह है कि यहां के लोग स्वतंत्रता के वातावरण में अपना जीवन
यापन करते हैं। सन् 2002 से फ्रांस एक नये वातावरण की ओर अग्रसर हुआ है जिसमें आपसी वार्तालाप
और सदभावना को विशेष स्थान दिया गया है।
मेरा विश्वास है कि समय के अनुसार फ्रांस
के लोग आपसी वार्तालाप और सदभावना में धैर्य और दृढ़ता से बढ़ते रहेंगे। मेरा विश्वास
है कि राजनीतिक जीवन और धार्मिक जीवन को अलग-अलग बनाये रखना आवश्यक है ताकि लोग एक ओर
तो धार्मिक स्वतंत्रता का आनन्द उठा सकें तो दूसरी ओर वे देश के प्रति अपने दायित्व का
भी बखूबी निर्वाह कर सकें। ऐसा होने से लोग इस बात को भी अच्छी तरह से समझ पायेंगे कि
मनुष्य के आध्यात्मिक जीवन और नैतिकता को मजबूत करने में धर्म का विशिष्ट स्थान है।
आज मेरी चिंता युवा के लिये भी है। कई लोग इस अपने जीवन में उचित मार्ग दर्शन नहीं पा
रहें है। कई लोग तो इससे भी जूझ रहे हैं कि पारिवारिक जीवन का अर्थ क्या है। कई युवा
धर्म के मर्म को समझने का प्रयास कर रहे हैंय़ मेरी इच्छा कि आज की युवा पीढ़ी को उचित
वातावरण दिया जाये ताकि वे जीवन को समझ सकें और जीवन में अपने दायित्व को बखूबी निभा
सकें।
मेरी चिंता पश्चिमी राष्ट्रों में व्याप्त धनी और गरीबों के बीच बढ़ रहे
खाई पर भी है। मेरी विश्वास है कि जल्द ही इस समस्या का समाधान हो पायेगा ताकि ग़रीबों
और कमजोर तबके के लोगों के हितों की रक्षा हो सके।
वैसे तो चर्च अपनी विभिन्न
संस्थाओं के द्वारा लोगों की मदद करती रही है फिर भी राज्य सरकार इस संबंध में कुछ ठोस
निर्णय करके ग़रीबों के हितों की रक्षा और उन्हें उचित मानवीय सम्मान दिलाने की दिशा
में प्रयास कर सकती है। आज मैं इस बात की ओर भी आप सबों का ध्यान खींचना चाहता हूँ ईश्वर
ने हमें जो सुन्दर दुनिया दी है इसकी रक्षा के लिये भी हम सदा प्रयासरत रहें ताकि आने
वाली पीढ़ी भी ईश्वर की सृष्टि का आनन्द ले सके।
आज मैं इस बात पर भी बल देना
चाहूँगा कि फ्रांस को यूरोपियन यूनियन की अध्यक्षता की भी जिम्मेदारी सौपी गयी है जिसका
उपयोग वह ऐसा करे जिससे की मानवाधिकारों की रक्षा हो सके औऱ सार्वजनिक हितों को बढ़ावा
मिल सके।फ्रांस यह देखे कि व्यक्ति का जीवन गर्भधारण से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक मानव
के अधिकारों की रक्षा हो।
इसके साथ शिक्षा के अधिकार पारिवारिक जीवन, काम, और
धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को लोग बढ़ावा दें और इसका सम्मान करें ताकि विश्व में
एकता और विकास का सौहार्दपूर्ण वातावरण बन सके।
पूरा विश्व अभी भय, शंका और चुनौतियों
के कठिन दौर से गुज़र रहा है इसलिये यह कार्य उतना आसान नहीं है फिर भी मुझे फ्रांस पर
विश्वास है क्य़ोंकि यह देश सदा से शांतिप्रिय रहा है और आपसी एकता और सौहार्द के लिये
कार्य करता रहा है।
एकता के संबंध में एक बात कहना चाहूँगा कि एकता का अर्थ समरूपता
न हों पर एक ऐसी एकता जो राष्ट्रीय और सांस्कृतिक विभिन्नताओं का सम्मान करे। राष्ट्रीय
समृद्धि तब ही प्राप्त की जा सकती है जब एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र का सम्मान करे और एक
साथ मिलकर विकास के लिये प्रयासरत रहे।
मेरा पूरा विश्वास कि फ्रांस अपने इस दायित्व
को भली-भाँति निभाने और विश्व में शांति व्यवस्था कायम करने और पूरे विश्व के विकास
में मह्त्वपूर्ण साधन सिद्ध होगा। माता मरियम की मध्यस्थता से मेरी ईश्वर से प्रार्थना
है कि वे फ्रांस को एकता समता भ्रातृत्व और सच्ची स्वतंत्रता से समृद्ध करे।
शुक्रवार
सन्ध्या सन्त पापा पेरिस स्थित बेरनारडिन कॉलेज में संस्कृति जगत के 700 ज्ञानियों से
मुलाकात कर उन्हें अपना सन्देश देंगे। इनमें शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति सम्बन्धी संयुक्त
राष्ट्र संघीय संगठन यूनेस्को तथा यूरोपीय संगठन के प्रतिनिधि भी सम्मिलित होंगे इसलिये
कहा जा रहा है कि यह सन्त पापा के लिये वह मंच होगा जहाँ से वे सम्पूर्ण यूरोप को सम्बोधित
कर सकेंगे। इस विषय में वाटिकन के प्रेस प्रवक्ता फादर फेदरीको लोमबारदी ने बताया कि
फ्राँस के बुद्धिजीवियों के साथ मुलाकात के लिये सन्त पापा ने बड़ी सावधानी के साथ, स्वयं
अपना व्याख्यान, जर्मन भाषा में तैयार किया है। फ्राँस के विख्यात समाचार पत्र ले मोन्द
के अनुसार "लूर्द की अनिवार्य तीर्थयात्रा के अतिरिक्त, 12 सितम्बर को पेरिस में 700
बुद्धिजीवियों के साथ मुलाकात को सम्मिलित करने के सन्त पापा के निर्णय से, निःसन्देह,
उनकी फ्राँस यात्रा का प्रमुख कारण स्पष्ट हो जाता है और वह हैः फ्राँस से लौकिक प्रवृत्तियों
की ओर झुकती देश की संस्कृति में धर्म और विश्वास पर उत्पन्न संकट के बारे में प्रश्न
करना।
इसका एक दृश्यमान संकेत होगी. शुक्रवार देर सन्ध्या, नोत्र दाम महागिरजाघर
से, युवाओं की मशालयुक्त शोभायात्रा। इस शोभायात्रा से पूर्व सन्त पापा पाँच शैक्षणिक
अकादमियों को समेटनेवाले इन्सतीतूत दे फ्राँस जायेंगे। कार्डिनल राटसिंगर रहते सन्त पापा
इस संस्था के नीति शास्त्र विभाग के सदस्य रह चुके हैं।
पेरिस की यात्रा के अन्तिम
चरण में सन्त पापा काथलिक कलीसिया के पुरोहितों एवं धर्मसंघियों से मुलाकात करने के अतिरिक्त
इस्लाम, यहूदी तथा अन्य धर्मों के नेताओं से भी मुलाकात कर रहे हैं। इन सभी कार्यक्रमों
की रिपोर्ट हम आप तक लगातार पहुँचाते रहेंगे।