देवदूत प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश
श्रोताओ, रविवार 24 अगस्त को, रोम शहर के परिसर में कास्तेल गोन्दोल्फो स्थित प्रेरितिक
प्रासाद के झरोखे से, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, प्राँगण में एकत्र तीर्थयात्रियों
को दर्शन दिये तथा उनके साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। इस प्रार्थना से पूर्व अपने
सम्बोधन में सन्त पापा ने, पूजन विधि पंचांग के 21 वें रविवार के लिये निर्धारित धर्मग्रन्थ
पाठों पर चिन्तन करते हुए कहाः
“अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, इस रविवार की
धर्मविधि, हम ख्रीस्तीयों के प्रति अभिमुख है किन्तु साथ ही यह हर स्त्री एवं हर पुरुष
के प्रति अभिमुख है। इसमें हम येसु द्वारा किये दो प्रश्नों को पाते हैं। सर्वप्रथम येसु
पूछते हैं – "मनुष्य का पुत्र कौन है? इस विषय में लोग क्या कहते हैं? उन्होंने उत्तर
दिया कि कुछ कहते हैं कि आप योहन बपतिस्ता हैं, कुछ कहते हैं एलियस, तो कुछ जेरेमियाह
तो कुछ कहते हैं किसी नबी में से एक। इसपर येसु ने 12 शिष्यों को प्रत्यक्ष सम्बोधित
कर उनसे पूछाः "और तुम, तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?" इसके उत्तर में सन्त पेत्रुस
ने सबकी ओर से निश्चयतापूर्वक कहाः "आप ख्रीस्त हैं, जीवित ईश्वर के पुत्र"।
यह
विश्वास की भव्य अभिव्यक्ति थी जिसे कलीसिया, उस काल से आज तक, अनवरत दुहराती रहती है।
हम भी आज, आत्मीय विश्वास के साथ यह उदघोषित करना चाहते हैं – "जी हाँ, येसु, आप ही ख्रीस्त
हैं, जीवित ईश्वर के पुत्र।" और ऐसा हम इस चेतना के साथ करते हैं कि ख्रीस्त ही वह यथार्थ
कोष हैं जिनके लिये सब कुछ बलिदान किया जा सकता है। येसु "जीवित ईश्वर के पुत्र हैं",
वे ही प्रतिज्ञात मसीह हैं जो मानव जाति को मुक्ति दिलाने के लिये इस धरती पर आये तथा
जीवन एवं प्रेम की उस तृष्णा को बुझाने आये जो प्रत्येक मनुष्य के हृदय में निवास करती
है। हर्ष एवं शांति को लानेवाली इस घोषणा का स्वागत कर मानवजाति कितना आनन्द, कितना
लाभ पा सकती है?"
सन्त पापा ने आगे कहाः "आप ख्रीस्त हैं, जीवित
ईश्वर के पुत्र"। विश्वास से प्रेरित पेत्रुस की इस अभिव्यक्ति का प्रत्युत्तर येसु इस
प्रकार देते हैं – "तुम पेत्रुस अर्थात् चट्टान हो और इसी चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया
का निर्माण करूँगा तथा नर्क के फाटक उसके विरुद्ध कभी खुल नहीं सकेंगे। तुम्हें मैं स्वर्ग
की चाभियाँ अर्पित कर दूँगा।"
तदोपरान्त उन्होंने कहाः "यह प्रथम
बार था जब येसु कलीसिया के बारे में बोले, उस कलीसिया के बारे में जिसका मिशन सम्पूर्ण
मानव जाति को, ख्रीस्त में, एक और केवल एक परिवार में सूत्रबद्ध करने की महान ईश्वरीय
योजना का कार्यान्वयन करना है। पेत्रुस एवं उनके उत्तराधिकारियों का मिशन यहूदी एवं ग़ैरयहूदियों
द्वारा संरचित एकमात्र कलीसिया की सेवा के प्रति समर्पित रहना है; उनका मिशन यह देखना
है कि कलीसिया किसी राष्ट्र विशेष अथवा संस्कृति विशेष के साथ अपनी पहचान न बनाये बल्कि
सम्पूर्ण विश्व में सब जातियों के सब लोगों की सेवा में प्रस्तुत रहे ताकि असंख्य विभाजनों
एवं विवादों से चिह्नित मनुष्यों के मध्य वह ईश्वर की शांति तथा ईश्वर के प्रेम की संजीवनी
शक्ति का परिचय दे सके। उस आन्तरिक एकता की सेवा जो दैवीय शांति से आती है तथा उस एकता
की सेवा जो प्रभु ख्रीस्त में भाई और बहन बनने के नाते निर्मित होती हैः यही प्रेरितवर
सन्त पेत्रुस के उत्तराधिकारी तथा रोम के धर्माध्यक्ष, सन्त पापा का विशिष्ट मिशन है।"
अन्त में सन्त पापा ने कहाः............ "इस मिशन की महान ज़िम्मेदारी
के समक्ष मैं सदैव, कलीसिया एवं विश्व की सेवा में, उन कार्यों के महत्व के प्रति सचेत
रहता हूँ जिन्हें प्रभु ईश्वर ने मेरे सिपुर्द किया है। इसीलिये, अति प्रिय भाइयों एवं
बहनों, मैं आप सबसे निवेदन करता हूँ कि आप अपनी प्रार्थनाओं द्वारा मुझे समर्थन दें ताकि
ख्रीस्त के प्रति निष्ठावान रहकर हम सब एक साथ मिलकर, वर्तमान युग में, उनकी उपस्थिति
की घोषणा कर उनके साक्षी बन सकें। मरियम, इस कृपा को हासिल करने में हमारी मदद करें जिन्हें
विश्वासपूर्वक हम, कलीसिया की माता तथा सुसमाचार प्रचार के तारे रूप में, पुकारते हैं।"
इतना कहकर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने उपस्थित तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत
प्रार्थना का पाठ किया तथा सब पर प्रभु की शांति का आह्वान कर सबको अपना प्रेरितिक आर्शीवाद
प्रदान किया --------------------------------------
देवदूत प्रार्थना के बाद,
दक्षिण ओसेतिया के लिये जॉर्जिया एवं रूस के बीच हुए युद्ध के सन्दर्भ में, किसी देश
का नाम लिये बग़ैर, रूस एवं पश्चिमी देशों के मध्य नित्य बढ़ते तनावों की पृष्टभूमि में
सन्त पापा ने कहाः "इन सप्ताहों में, अन्तरराष्ट्रीय स्थिति नित्य तनावपूर्ण होती जा
रही है जो महान चिन्ता का विषय है। कड़ुवाहट के साथ हमें यह देखना पड़ रहा है कि विश्वास
एवं सहयोग का वातावरण जिसे राष्ट्रों के बीच सम्बन्धों की विशेषता होनी चाहिये वह दिन
व दिन बिगड़ता चला जा रहा है। राष्ट्रों का परिवार बनने की सामान्य चेतना जाग्रत करने
हेतु प्रयासरत मानवजाति की कठिनाई को कैसे नज़र अन्दाज़ किया जा सकता है? जिसे, संयुक्त
राष्ट्र संघीय महासभा में, स्व. सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने आदर्श स्वरूप इंगित किया
था। हमें सामान्य एवं एक ही नियति में सूत्रबद्ध होने की चेतना को गहन करना चाहिये जो,
अन्ततः, हम सब की पारलौकिक नियति है ताकि राष्ट्रीयवादी संघर्षों की ओर वापस लौटने को
रोका जा सके जिनसे अन्य ऐतिहासिक कालों में दुखद एवं त्रासदिक परिणाम उत्पन्न हुए थे।
हाल में हुई घटनाओं से अनेक का यह विश्वास दुर्बल हुआ है कि ऐसे अनुभव केवल अतीत की बातें
हैं। तथापि, सन्त पापा ने कहा, हमें आशा का परित्याग नहीं करना चाहिये अपितु नई समस्याओं
को पुराने निकायों से सुलझाने के प्रलोभन का बहिष्कार करने के प्रति स्वतः को समर्पित
करना चाहिये। हिंसा का परित्याग अनिवार्य है। विवादों के समाधान हेतु सन्त पापा ने पारदर्शी
वार्ताओं, प्रतिज्ञाओं के प्रति वचनबद्धता तथा जन कल्याण की भावना में रचनात्मक कदम उठाये
जाने का मार्ग सुझाया ताकि फलप्रद एवं निष्कपट सम्बन्धों की स्थापना हो सके तथा वर्तमान
एवं भावी पीढ़ी को मैत्रीपूर्ण, नैतिक एवं नागर विकास से परिपूर्ण काल की गारंटी दी जा
सके।
उपस्थित भक्तों से सन्त पापा ने अनुरोध किया कि वे प्रार्थना करें ताकि
अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के सभी सदस्य, विशेष रूप से जिन्हें महान जि़म्मेदारी सौंपी गई
है, न्याय एवं शांति के पुनर्स्थापन हेतु उदारतापूर्वक कार्य करें। माँ मरियम हमारे इस
मनोरथ के लिये मध्यस्थता करें।"
सन्त पापा की इस अपील के बाद आईये अब सुनते हैं
आज का भक्तिगीत और उसके बाद समाचार ......................................