2008-08-21 14:15:36

श्रीलंका में शांति के लिये अन्तरधार्मिक वार्ता कारगर उपाय


श्रीलंका में विभिन्न धर्मों के लोगों ने देश में शांति की स्थापना के लिये अन्तरधार्मिक वार्ता कारगर उपाय सिद्ध हो रही है। महाधर्माध्यक्ष मारियो ज़ेनारी ने लोसेर्भातोरे रोमानो को बताया कि श्रीलंका में ईसाइयों और बौद्धों के बीच जो संबंध कायम हो रहे हैं उसका आधार है आपसी सम्मान और इसकी शुरुआत सदियों पहले हो चुकी है।श्रीलंका में बौद्ध धर्म मानने वालों की जनसंख्या 70 फीसदी है।

संत पापा के श्रीलंका में नियुक्त राजदूत ने बताया है कि बौद्ध धर्मावलंबी ईसाइसों को सदा ही सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और ईसाइयों के द्वारा चलाये जा रहे सामाजिक सेवा, शिक्षा संबंधी कार्य और लोगों के साथ स्थापित सौहार्दपूर्ण संबंधों की सराहना सदा करते हैं।

महाधर्माध्यक्ष ज़ेनारी ने आगे बताया कि श्रीलंका में जिन दो संस्थाओं ने अन्तरधार्मिक वार्ता के क्षेत्र में सर्वाधिक कार्य किये है वे है काँग्रेस ऑफ रेलिजनस और इटर रेलिजियस कौंसिल फॉर पीस। उन्होंने यह भी कहा कि ये दोनों संस्थायें न केवल श्रीलंका के लिये वरन् पूरे विश्व के लिये अन्तरधार्मिक वार्ता की दिशा में आदर्श प्रस्तुत कर रहीं हैं।

वाटिकन के राजदूत ने कहा कि सांस्कृति विविधतायें किसी भी राष्ट्र को शांति के लिये एक साथ कार्य करने के रास्ते में बाधक नहीं हो सकती हैं।

उन्होंने आगे बताया कि स्थानीय अंतरधार्मिक परिषद् न केवल श्रीलंका के त्रिकोनमाली बट्टिकालोओ धर्मप्रांत में कार्य कर रहे हैं पर इस परिषद् ने देश की अन्य समस्याओं के समाधान में भी अपना योगदान दे रहा।

इस अवसर पर बोलते हुए संत पापा के राजदूत ने इस ओर भी अपना ध्यान खींचा कि देश में कई छोटे-छोटे धार्मिक दलों के पनपने से भी देश में असहिष्णुता की भावना फैली है।











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