नई दिल्लीः भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने औद्योगिक योजना के विरुद्ध आदिवासियों की अपील
ठुकराई
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने, उड़ीसा में, दो औद्योगिक योजनाओं के विरुद्ध आदिवासियों
एवं किसानों की अपील को ठुकरा दिया है। किओनझर में मानवाधिकार कार्यकर्त्ता दस्कर बारिक
ने एशिया समाचार से कहा कि प्रायः इस प्रकार की औद्योगिक योजनाएँ निर्धन आदिवासियों एवं
किसानों से उनकी जीविका के साधन छीन लेती हैं। उक्त अपील के ठुकरा दिये जाने के बाद
अब ब्रितानी कम्पनी वेदांत को उड़ीसा के नियमगिरि पर्वतों से बाओकसाईट निकालने की स्वतंत्रा
रहेगी। आदिवासी इस पर्वत को पवित्र मानते हैं। कम्पनी ने इस कार्य के लिये साढ़े तीन
अरब डॉलर खर्च किये हैं। पर्वत के नीचे वह बाओकसाईट से आलूमिनियम या जस बनाने के लिये
एक परिष्करण शाला का भी निर्माण कर रही है। इसके अतिरिक्त कोरिया की एक कम्पनी 12 आरब
डॉलर की लागत पर एक लौह संधानशाला में निवेश कर रही है। इस योजना से बताया जाता है कम
से कम 22 हज़ार आदिवीसी बेघर हो जायेंगे। मानवाधिकार कार्यकर्त्ता बारिक का कहना
है कि इस प्रकार की पहलें प्राकृतिक संसाधनों एवं पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती हैं तथा
सम्पूर्ण ग्रामीण समुदायों को नष्ट कर देती हैं। सरकार पर उन्होंने स्वार्थ सिद्धि का
आरोप लगाया और कहा कि वह आदिवासियों एवं किसानों के हित की बात नहीं सोच रही है तथा उनकी
आस्थाओं, उनकी संस्कृति एवं उनकी परम्पराओं की अवहेलना कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत
के सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के दुष्परिणाम आदिवासी समुदायों, पर्यावरण, जैव
विविधता, खनिज, वन भूमि तथा सम्पूर्ण उड़ीसा के जल संसाधनों पर पड़ेंगे। उन्होंने कहा
कि इस निर्णय से साफ दिखाई पड़ता है कि आदिवासियों की आवाज़ को अनसुना कर दिया जाता है।