मुम्वई के कार्डिनल ओस्वाल्ड ग्रेसियस ने अपील की है कि वे अस्वस्थ भ्रूण
का गर्मपात न करें। बच्चे को जन्म लेने दें चर्च इसकी देखभाल करेगी। कार्डिनल ग्रेसियस
ने उक्त बातें उस समय कहीं जब निकिता और हर्षद दम्पति ने मुम्बई के उच्च न्यायालय में
25 सप्ताह के बीमार के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति माँगी। भारतीय संविधान संहिता के
अनुसार न्यायालय सिर्फ 20 माह के भ्रूण का ही गर्भपात करने की अनुमति देती है, या तो
बैसी परिस्थिति में गर्भपात की अनुमति देती है जब बच्चे की माँ के जीवन को खतरा हो। इस
घटना ने लोगों का ध्यान खींचा है क्योंकि पहली बार किसी दम्पति ने न्यायालय से गर्भपात
की अनुमति माँगी है। कानून के विद्वानों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा
है कि गर्भपात संबंधी भारतीय कानून सिर्फ माँ की सेहत पर अपना ध्यान देते हैं। कानून
बच्चे के जीवन पर कानून ने ध्यान नहीं दिया है। अतः कानून के संशोधन की आवश्यकता है। विभिन्न
पत्र-पत्रिकाओं ने भी इस संबंध में अपने समाचार छापे हैं। इसमें इस बात को विशेष रूप
से प्रकाशित किया है कि कार्डिनल ग्रेसियस ने गर्भपात को उचित नहीं ठहराया है औऱ कहा
है कि चर्च ऐसे बीमारग्रस्त बच्चों की देखभाल करती रही है और इस बच्चे के जन्म लेने पर
भी उसकी देखभाल और परवरिश करेगी। ज्ञात हो कि कार्डिनल ने कलीसिया के नाम पर सदा इस बात
पर बल दिया है कि गर्भपात के द्वारा जीवन समाप्त करने की संस्कृति से आज के समाज को बचाया
जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि आज के युग में लोगों को जीवन जीने और दूसरों को जीवन देने
की संस्कृति का प्रचार करने की ज़रुरत है। गर्भपात एक भयंकर सामाजिक बुराई है जो मनुष्य
के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन दोनों का विनाश कर सकता है। |