2008-07-15 12:06:18

वाटिकन सिटीः 82 वें विश्व मिशन दिवस के लिये सन्त पापा का सन्देश प्रकाशित


वाटिकन ने, सोमवार 14 जुलाई को, 82 वें विश्व मिशन दिवस के लिये सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के सन्देश की प्रकाशना की। विश्व मिशन दिवस इस वर्ष रविवार 19 अक्तूबर को मनाया जायेगा।

"येसु ख्रीस्त के सेवक एवं प्रेरित" शीर्षक से प्रकाशित अपने सन्देश में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें कहते हैं कि वर्त्तमान विश्व की परिस्थितियाँ मानव जाति के भविष्य के प्रति घोर चिन्ता उत्पन्न करती हैं।

82 वें विश्व मिशन दिवस के लिये विश्व के काथलिक धर्मानुयायियों के नाम लिखे अपने सन्देश में सन्त पापा सभी को आमंत्रित करते हैं कि वे इस युग में भी सुसमाचार उदघोषणा की आवश्यकता पर चिन्तन करें। वे लिखते हैं, "सन्त पौल को समर्पित पौलीन वर्ष धरती के अन्तिम छोर तक सुसमाचार उदघोषणा का स्वर्णिम अवसर है।"

उन्होंने लिखाः "मानवजाति पीड़ित है, वह सच्ची स्वतंत्रता की बाट जोह रही है, वह एक नये और बेहतर विश्व की प्रतीक्षा में है, वह मुक्ति प्राप्त करने के लिये प्रतीक्षारत है।"

उन्होंने कहा कि वर्त्तमान विश्व में व्याप्त परिस्थितियाँ मानवजाति के भविष्य के प्रति घोर चिन्ताएँ उत्पन्न करती हैं। उस हिंसा एवं निर्धनता का उन्होंने उल्लेख किया "जो लाखों लोगों का दमन करती तथा जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर उन्हें भेदभाव का शिकार बनाती एवं उत्पीड़ित करती है।" सन्त पापा के अनुसारः "अन्तरराष्ट्रीय दृश्य पटल पर आज विद्यमान परिस्थितियाँ मानव एवं पर्यावरण के बीच बने सम्बन्धों के लिये निरन्तर व्याप्त ख़तरा हैं जो विभिन्न तरीकों से मानव जीवन पर प्रहार कर रहीं हैं।"


"क्या," सन्त पापा प्रश्न करते हैं, "भविष्य के लिये कोई आशा शेष है? या, क्या मानवजाति का कोई भविष्य है?" आगे लिखते हैं, "हम विश्वासियों के लिये, इन प्रश्नों का उत्तर सुसमाचार से आता है। ख्रीस्त हमारे भविष्य हैं। सन्त पौल ने यह भलीभाँति समझ लिया था कि केवल ख्रीस्त में ही मानवजाति मुक्ति एवं आशा प्राप्त कर सकती है।"

सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने इस बात पर बल दिया कि ख्रीस्त के प्रति अपने प्रेम के कारण ही सन्त पौल रोमी साम्राज्य के मार्गों में, कठिनाइयों के बावजूद, सुसमाचार के सन्देशवाहक बनकर निकल गये आज वे ही हमारे प्रेरणा स्रोत हैं जिनसे हम एक सच्चे सुसमाचार प्रचारक के सदृश करूणा, उदारता, तत्परता एवं अन्यों की समस्याओं के प्रति चिन्ता करना सीख सकते तथा ख्रीस्तीय प्रेम को सम्पूर्ण विश्व में फैला सकते हैं।

अन्त में सन्त पापा ने सतत् प्रार्थना का आव्हान करते हुए कहा कि प्रार्थना ही ख्रीस्त की ज्योति को सब लोगों के मध्य फैलाने का आध्यात्मिक साधन है, उस सच्ची ज्योति को फैलाने का जो इतिहास की हर परछाई को प्रज्वलित करती है।










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