25 जून, 2008 को बुधवारीय-आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें
का संदेश
बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पेत्रुस महागिरजाघर
के प्रांगण में एकत्रित हजारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।
उन्होंने कहा - प्रिय भाइयो एवं बहनों, प्राचीन धर्माचार्यों की शिक्षामाला को जारी रखते
हुए आज आइये हम सातवीं शताब्दी के एक महान् संत मक्सीमुस के जीवन पर मनन-चिंतन करें।
संत
मक्सीमुस ने ख्रीस्तीय विश्वास की रक्षा औऱ येसु को सच्चे मानव के रूप का स्वीकार करने
के पक्ष में खुल कर प्रचार किया। मक्सीमुस का जन्म पलीस्तीन में हुआ था पर एक मठवासी
बनकर उन्होंन अपना जीवन कोन्सतनतिनोपल, अफ्रीका और रोम में बिताया। संत मक्सीमुस ने अपने
लेखों के द्वारा येसु के जन्म के रहस्य को लोगों को समझाया।
इसी समय एक अन्य विचारधारा
के लोग थे जो येसु के धरा पर आने के रहस्य के बारे में विपरीत विचार का प्रचार कर रहे
थे। मक्सीमुस ने इस बात को बिल्कुल स्पष्ट रूप से लोगों को बताया कि हमारी मुक्ति येसु
पर ही निर्भर है। और ईसा मसीह, जिन्होंने हमारे लिये मनुष्य रूप धारण किया अपनी स्वतंत्र
इच्छा शक्ति से ईश्वर द्वारा बनाये गये योजना में अपना योगदान दिया।
अगर हम गौर
करें तो पायेंगे कि संत मक्सीमुस के द्वारा बतायी गयी बातें ही सच हैं कि येसु न ईश्वर
की इच्छा का पालन करते हुए मनुष्य जीवन को गले लगाया औऱ पूरी दुनिया को बचाया और उन्हें
मजबूत किया। इस प्रकार ईसा मसीह का स्थान सर्वोच्च है और दुनिया की अन्य ताकतें येसु
से जुड़ी हुई हैं।इस प्रकार यह ज्ञान की इस दुनिया में जो कुछ भी हैं वे इसलिये मह्त्वपूर्ण
हैं क्योंकि ये येसु से जुड़ी हुई हैं लोगों को प्रेरित करे और वे सदा ही येसु की ओर
ही अपना कदम बढ़ाते रहें और उसी से होकर अपने जीवन का मूल्य खोंजे और मुक्ति को प्राप्त
करें।
इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया। उन्होंने देश-विदेश से एकत्रित
तीर्थयात्रियों और पर्यटकों पर विशेषकरके इंगलैंड, स्कॉटलैंड, नीदरलैंड, आईसलैंड, स्वीडेन,
पाकिस्तान और अमेरिका से आये लोगों पर प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए सबको
अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।