अन्तरराष्ट्रीय शरणार्थी दिवस कलीसिया की सामाजिक शिक्षा की पुनर्पुष्टि का एक मौका,
कहना वाटिकन अधिकारी का
वाटिकन सिटी, जून 20, 2008
वाटिकन के एक अधिकारी ने कहा कि आज अन्तरराष्ट्रीय
शरणार्थी दिवस का मनाया जाना, कलीसिया की सामाजिक शिक्षा की पुनर्पुष्टि का एक मौका है।
आप्रवासियों एवं यात्रियों की प्रेरिताई हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष
कार्डिनल रेनातो मारतीनो ने शुक्रवार को लोस्सरवातोरे रोमानो समाचार पत्र से कहा कि विदेशियों
को स्वीकार करना यूरोपीय अस्मिता का प्राण है।
आठ वर्ष पूर्व, संयुक्त राष्ट्र
ने जून बीस को अन्तरराष्ट्रीय शरणार्थी दिवस रूप में घोषित किया था।
कार्डिनल
मारतीनो के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल कलीसिया की सामाजिक शिक्षा व्दारा स्थापित
सिद्धान्तों की पुनर्पुष्टि करने का अवसर है जो मानवाधिकारों पर सार्वभौम घोषणा पत्र
में भी सम्मिलित हैं।
कार्डिनल महोदय ने इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि
इस वर्ष शरणार्थी दिवस आप्रवास पर यूरोपीय संसद के मत के दो दिन बाद ही पडा जिसकी विपक्षियों
ने, कठोर बताकर, निन्दा की है।
इस सन्दर्भ में, कार्डिनल महोदय ने स्पष्ट किया
कि कलीसिया आप्रवास को नियंत्रित करने की योजना का विरोध नहीं करती किन्तु इस बात पर
बल देती है कि इसे केवल मानवाधिकारों की रक्षा ही नहीं करनी चाहिये बल्कि उनपर आधारित
भी होना चाहिये।
उन्होंने कहा, इन अधिकारों में शरणार्थी के अधिकार की भी रक्षा
की जानी चाहिये। उन्होंने स्मरण दिलाया कि, सन् 1951 में स्थापित जिनिवा समझौते के अनुसार,
जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, राजनैतिक विचार अथवा किसी विशिष्ट सामाजिक दल के सदस्य होने
के कारण प्रताडित व्यक्तियों की रक्षा करना हमारा दायित्व है। इसी प्रकार, उन्होंने
युद्ध एवं हिंसा से पलायन करनेवालों की रक्षा का भी आव्हान किया।