2008-04-04 12:46:18

ईश्वर की दिव्य करूणा ही अन्तरधार्मिक वार्ता का सच्चा आधार है



फ्रांस के लेयोन के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल फिलिप्पी बारबारिन ने कहा है कि संत पापा जोन पौल द्वितीय के द्वारा प्रचारित ईश्वर की दिव्य करूणा ही अन्तरधार्मिक वार्ता का सच्चा आधार है। कार्डिनल ने उक्त बातें उस समय कहीं जब वे रोम में आयोजित दिव्य करुणा विषय पर आयोजित प्रथम विश्व प्रेरितिक काँग्रेस मे प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर रहे थे।

कार्डिनल ने आगे कहा कि दिव्य करूणा या दया एक ऐसा विषय है जो सभी धर्मों के लिये महत्वपूर्ण है और इसी को आधार बनाकर अन्तरधार्मिक वार्ता को सफल बनाया जा सकता है। अगर हम यहूदियों की बाते करें तो हमें यह मालूम है कि ईश्वर ने यहूदियों को चुना ताकि वे ईश्वर की दया का प्रचार एवं प्रसार करें। ईश्वर ने यहूदियों को अपनी दया में चुना और उनपर यह दायित्व भी सौंपा कि वे ईश्वरीय दया का बखान करें।ईसाईयों को भी ईश्वर ने बपतिस्मा का वरदान दिया जिसके द्वारा वे येसु के अंग बन जाते हैं ताकि वे भी भले समारितान की तरह दूसरों पर दया दिखा सकें।

कार्डिनल बारवारिन ने आगे कहा कि मुसलमानों के बीच भगवान के जिन नामों को वे पुकारते हैं उनमें सबसे ज्यादा बार ईश्वर को दयालु कहते हैं जैसे ‘अर्रहमान’ अर्थात् अति दयालु और ‘अर्रहीम’ अर्थात् सर्व दयालु। मुसलमान इन दोनों शब्दों को हर रोज़ 17 बार दुहराते हैं।

इस प्रकार तीनों धर्मों की आध्यात्मिकता के प्रकाश में यही कहा जा सकता है कि सहनशीलता एक ऐसा गुण है जो अन्तरधार्मिक वार्ता में सहायक सिद्ध हो सकता है। उन्होंने आगे कहा कि इतना ही नहीं वे तो चाहते हैं कि हम इससे एक कदम आगे बढ़े और दूसरे का सम्मान करें और यदि अवसर मिले तो दूसरे धर्म की तारीफ़ करने से भी कभी न चूकें।

कार्डिनल बारबारिन ने आगे कहा कि उन्हें इस पर पूरा विश्वास है कि अगर हमारा दृष्टिकोण दूसरे धर्मों के प्रति नम्रतापूर्ण रहा तो हम ईश्वर की ओर से उन सभी वरदानों को प्राप्त करेंगे जो ईश्वर हम सबों को देना चाहते हैं और जिससे हम सच्चे अर्थ में ईश्वर की दिव्य दया और खुशी के सेवक बन सकेंगे







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