2008-03-25 10:04:32

काथलिक कलीसिया के सामाजिक सिद्दांत


काथलिक कलीसिया के सामाजिक सिद्दांतों का सार संग्रह काथलिक कलीसिया का एक ऐसा महत्वपूर्ण दस्तावेज़ हैं जिसे संत पापा जोन पौल द्वितीय के आग्रह पर न्याय और शांति के लिये बनी परमधर्मपीठीय समिति ने तैयार किया है।

यह दस्तावेज़ काथलिक कलीसिया की शिक्षा, सिद्धांतों एवं मूल्यों के आधार पर सत्य को पाने की एक मार्गदर्शिका है जिसके आधार पर व्यक्ति का सामाजिक जीवन अर्थपूर्ण होगा और सार्वजनिक हित के कार्यों को बढ़ावा मिलेगा।

काथलिक कलीसिया के सिद्दांतों का सार संग्रह के तीन भाग हैं। इसके पहले भाग में मनुष्य के लिये ईश्वर की योजना, कलीसिया के कार्य और मानव के अधिकार और कर्तव्यों के बारे में बताया गया है। दूसरे भाग में परिवार का महत्व, व्यक्ति का सामाजिक आर्थिक राजनीतिक और अन्तराष्ट्रीय जीवन और पर्यावरण तथा शांति के बारे में बारे में बताया गया है।और इस दस्तावेज़ के तीसरे और अन्तिम भाग में कुछ व्यवहारिक सुझाव दिये गये हैं जिसके द्वारा कलीसिया के सामाजिक सिद्धांतों को व्यक्ति अपने जीवन में लागू कर सकता है।

इस दस्तावेज़ के द्वारा काथलिक कलीसिया चाहती है कि लोग आज के समाज में उठ रहे ज्वलंत सवालों का समाधान सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान कर सकें और एक साथ जीने का एक ऐसा रास्ता खोजें जिसमें एक ओर तो लोगों को सुसमाचार के मूल्यों को बताया जा सके तो दूसरी ओर सदभाव, समभाव और सर्वजनाय हिताय की भावना को सिंचित करते हुए लोग एक अर्थपूर्ण एवं परहितमय जीवन जीने का मार्गदर्शन भी प्राप्त कर सकें।


1.काथलिक कलीसिया अपनी स्थापना के तीसरे सहस्त्राब्दी में प्रवेश कर लिया है और अपने भले चरवाहे येसु मसीह के नेतृत्व में एक तीर्थयात्री की तरह ईश्वर की खोज में प्रयासरत है। ईसाईयों के लिये येसु मसीह ही वह दरवाजा है जिससे होकर ख्रीस्तीय मुक्ति प्राप्त करते हैं। जैसा कि ईसा ने खुद ही कहा था कि वे मार्ग, सत्य और जीवन हैं।और जब भी हम इसके बारे में चिन्तन करते हैं हम येसु पर अपना विश्वास मजबूत करते हैं और यह आशा व्यक्त करते हैं कि येसु मसीह ही हमारा मसीहा है और हम सबका लक्ष्य भी वही हैं जहाँ हम एक दिन पहुँचना चाहते हैं।

आज काथलिक कलीसिया इस बात को दुनिया के लोगों को स्पष्ट रूप से बताना चाहती है कि ईसा के नाम ही में और उसके बताये गये पथ में चलने से ही हमारा उद्धार होगा। जिस मुक्ति को येसु ने हम सबों के लिये कमाया है हम विश्वास करते हैं कि उस मुक्ति के विजय में हम अपनी मृत्यु के बाद पूर्ण रूप से सहभागी होंगे । येसु ने मुक्ति के लिये जो मूल्य चुकाये हैं वह न केवल हमारी मृत्यु को बल्कि हमारे रोज दिन के भी प्रभावित करता है।आज येसु के जीवन से मनुष्य का सामाजिक आर्थिक राजनीतिक सांस्कृतिक जीवन भी प्रभावित है। ऐसा इसलिये है क्योंकि येसु चाहते हैं कि हमें पूर्ण रूप से मुक्ति मिले और व्यक्ति ईश्वरत्व को प्राप्त कर सके।

तीसरी सहस्त्राब्दि के प्रारम्भिक वर्षों में भी काथलिक कलीसिया इस बात को बताने से नहीं हिचकिचाती है कि येसु ने जिस प्रेम सेवा और न्याय के राज्य की स्थापना करना चाहते हैं उसका सार सुसमाचार में हैं। आज भी कलीसिया संत पौल के वचनों को जिसे पौल ने तिमथी को लिखा था आधार बनाते हुए कहती है कि सुसमाचार का प्रचार करो। यही समझो कि तुम्हारा सबसे महत्वपूर्ण कार्य है सुसमाचार का प्रचार करना।अगर इसके लिये धैर्य की आवश्यकता है तो धैर्य के साथ ही लोगों को येसु के मार्ग के बारे में बताओ। लोगों को विश्वास दिलाओ प्रोत्साहन दो और आवश्यकता पडे़ तो डाँटो पर सुसमाचार प्रचार का कार्य जारी रहे। संत पौल आगे कहते हैं कि समय आ रहा है जब लोग ईश्वर की बातों को सुनना पसन्द नहीं करेंगे। वे उन्हीं बातों को ध्यान देंगे जो उन्हें जीवन की गहराई की ओर नहीं वरन् ईश्वर से दूर ले जाता है। इस प्रकार वे ईश्वर से और सत्य से दूर चले जायेंगे। संत पौल तो अपने मित्र तिमथी को यहाँ तक भी कहते हैं कि तुम सुसमाचार प्रचार के लिये दुःख उठाने के लिये भी तैयार हो जाओ। आज की परिस्थिति में सुसमाचार का प्रचारक बनना ही हमारा सबसे वड़ा कर्तव्य है।

3.आज कलीसिया चाहती है कि सुसमाचार का प्रचार करते हुए दुनिया के लोगों को येसु मसीह के नाम पर यह भी बताना चाहती है कि हम किस तरह से मनुष्य के जीवन को उचित सम्मान देते हुए हम सबके साथ आपसी प्रेम के साथ जीवन जी सकते हैँ। काथलिक कलीसिया लोगों का यह बताना चाहती है कि किस प्रकार ईश्वरीय प्रज्ञा का सदुपयोग करते हुए हम न्याय और शांति की स्थापना के लिये कार्य कर सकते हैं। काथलिक कलीसिया ने सामाजिक जीवन का जो मापदंड बनाया है वह एक ऐसा सिद्धांत है जो विश्वास से प्रवाहित होता है जो लोगों में आशा जगाता है और जिसके पालन से दुनिया के सब लोग एक-दूसरे के भाई-बहन बन जायेंगे और एक-दूसरे के विकास में काम आ सकेंगे। वास्तव में यह ईश्वरीय प्रेम की अभिव्यक्ति है एक ऐसा प्रेम जिसमें पिता ईश्वर ने दुनिया को इतना प्यार किया कि उसके लिये अपने एकलौते पुत्र को दे दिया। येसु ने प्रेम की जो नयी परिभाषा दी उसके अनुसार विश्व एक परिवार बन जाता है और इसमे बसने वाले सभी एक-दुसरे के भाई-बहन बन जाते हैं।

4. जब लोगों को मालूम होगा कि उन्हें ईश्वर प्यार करते हैं तब वे अपने वास्तविक रूप को समझ पायेंगे। वे यह समझ पायेंगे कि उनका जीवन सिर्फ उनका नहीं है पर दूसरों की भलाई के लिये है। वे यह भी समझ पायेंगे कि उन्हें उनके जीवन में वास्तविक संतुष्टि तब मिलेगी जव उनका जीवन अपने पड़ोसी के साथ अच्छा और प्रेमपूर्ण रहेगा। जो व्यक्ति ईश्वर के प्रेम को अच्छी तरह से समझ पायेगा वह अपने पड़ोसी के साथ अपने रिश्ते को बेहतर बना पायेगा। और जब व्यक्ति के साथ व्यक्ति का संबंध सुधरेगा तब समाज संरचनाओं में अमूल परिवर्तन होंगे जो सबके हित के लिये होंगे। और जब ऐसे लोगों की संख्या बढ़ेगी तब जहाँ भी झगड़े हों तो इसका शांतिपूर्ण समाधान हो पायेगा जहाँ कहीं भी लोगों के बीच में घृणा है उसे आपसी भाईचारे की भावना को बढ़ावा देकर दूर किया जा सकेगा और जहाँ अन्याय या शोषण है वहाँ सबको न्याय दिलाने का प्रयास किया जा सकेगा। मेरा विश्वास है कि विश्व के लोग ईश्वर के प्रेम से ही सच्चे इंसान बन सकते हैं और ईश्वर के प्रेम से ही वे सभी लोग जिनका मन और दिल के भले हैं वे न्याय और विकास को एक नये तरीके से देख पायेंगे और इससे सत्य और न्याय का साम्राज्य स्थापित हो पायेगा।

5.ईश्वर का प्रेम हमें आमंत्रित करता है कि हम दुनिया के लिये अपना योगदान दें। आज काथलिक कलीसिया भी इस कार्य के लिये उत्साहित है और इसीलिये चर्च ने सामाजिक सिद्दांत दिये हैं ताकि इसके द्वारा मनुष्य की विभिन्न समस्याओं समुचित समाधान हो सके।आज दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जिन्हें हमारी सहायता की आवश्यकता है कई लोग ऐसे हैं जो अन्याय सह रहें हैं और उन्हें न्याय का इन्तज़ार है कई लोग बेरोजगार हैं और उन्हें इन्तजार हैं कि एक दिन उन्हें काम मिलेगा।कई लोग ऐसी जिन्दगी बसर कर रहें हैं जिन्हें कोई मनुष्य जीवन का सम्मान नहीं है।

मुझे आश्यर्य होता है कि आज भी विश्व के कई भागों में लोग भूख से मरते हैं कई लोग बेघर-बार हैं कई लोग निरक्षर हैं कई लोगों के लिये चिकित्सा की सामान्य सुविधा भी नहीं है। लोग अभी भी बहुत गरीब हैं ।श्रोताओ ये तो है गरीब देशों की समस्यायें। अगर हम गरीबी के दूसरे रूप पर गौर करें तो हम पायेंगे कि धनी देशों में लोगों के पास धन है पर उन्होंने अपने जीवन का अर्थ खो दिया हैं। वे नशीली पदार्थों के शिकार हो गये हैं। उन्हें यह भय सताता है कि ब़ुढ़ापे में वे अकेले छोड़ दिये जायेंगे। कई लोग मानसिक यंत्रणायें झेल रहे हैं तो कई सामाजिक रूप से तिरस्कृत हैं।इतना ही नहीं श्रोताओ हम इस बात को कैसे नज़रअन्दाज़ कर सकते हैं कि हमारे सामने पर्यावरण की कितनी गंभीर समस्या है जिससे न केवल मानव को पर इस भूमंडल में जीने वाले सभी प्राणियों के जीवन को खतरा हो गया है। इतना ही नहीं मनुष्य ने अपनी प्रगति तो कि है पर विभिन्न देशों के बीच की दुशमनी के कारण विश्व में हमेशा युद्ध का खतरा मंडराता रहता है। और कई बार तो मानव के मूलभूत अधिकारों के हनन से भी लोग विशेष कर के बच्चों का भविष्य धूँधला दिखाई पड़ने लगता है। ख्रीस्तीय सामाजिक सिद्धांत लोगों को यही बतलाना चाहते हैं कि लोग दुनिया को बेहतर बनाने कि लिये कुछ ठोस सकारात्मक कदम उठायें और खुशी और स्वेच्छा से इस दिशा में लगातार अपना योगदान करें ताकि यह दुनिया में न्याय और समता का राज्य स्थापित हो सके।








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